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दिल की भी जुबां होती

Onkar Verma 27 Jan 2024 कविताएँ समाजिक Philosophical, Social, Romantic, Insipirational 35678 0 Hindi :: हिंदी

दिल की भी जुबां होती
गर दिल की भी कोई जुबां होती.....
तो शायद यह दुनियां न यूं इतनी परेशाँ होती...
न कोई लवों को खोलता
न कोई मुख से कुछ बोलता
बस आंखों -आंखों से ही बातें बयां होती....
गर दिल की भी कोई जुबां होती.....
तो शायद यह दुनियां न यूं इतनी परेशाँ होती...
मन को पढ़ लेता हर कोई
दिल की समझ लेता हर कोई
न ये नफरतें होती
न कोई नाराज़गी  यहां होती...
दिल की भी गर कोई जुबां होती.....
शायद यह दुनियां न यूं इतनी परेशाँ होती....
चेहरा गर सच में आयना बन जाता
दिल में क्या है सब दिख जाता 
सबका सही पता चल जाता 
सबकी सही पहचान यहां होती....
दिल की भी गर कोई जुबां होती.....
शायद यह दुनियां न यूं इतनी परेशाँ होती....
दूसरों का मन पढ़ पाते
अपने मन की भी सच -सच बताते
कोई कुछ न छुपाता
कोई किसी का दिल न दुखाता 
हर तरफ खुशियां ही खुशियां होती
गर दिल की भी कोई जुबां होती.....
शायद यह दुनियां न यूं इतनी परेशाँ होती....

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