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संस्कृति की पहचान-हमारा नववर्ष का त्यौहार"

Shreyansh kumar jain 09 Apr 2024 कविताएँ समाजिक 50000 2489 0 Hindi :: हिंदी

आज मनेगा नववर्ष भारत माँ के प्रांगण में, 
झूम रही है फसलें सारी भारत माँ के दामन में, 
सारा मौसम खिल उठा है,
सुरज की किरणें चमक गयी है,
फागुन की खुशबू से मेरी धरती महक गयी है,
चैत्र प्रतिपदा को आज यह त्यौहार मनाया जाऐगा,
आर्यव्रत की धरा पर आज नववर्ष मनाया जाऐगा ।।
डाली में खिलते फूलों से सारे उपवन महक गये है,
पर्वत में होती हरियाली से जीवन में रंग बिखर गये है, 
चारों ओर लहराती फसलों से बहारों में गीत बिखर गये है,
शस्य श्यामला की धरती सेआज नववर्ष के रंग बिखर गये है।
इज्जत, अस्मिता ओर संस्कृति से ना कोई खिलवाड़ है,
पश्चिमी संस्कृति ओर फुहडपन का ना कोई आधार है,
गुलामी की जंजीरों को तोड़ता यह हमारा त्यौहार है, 
सुधा रस बहाती धरती यह नववर्ष का आगाज है,
चैत्र प्रतिपदा को मनाया जाता यह नववर्ष का त्यौहार है ।।

        """" स्वरचित रचना """"

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