Chanchal chauhan 09 Feb 2024 कहानियाँ धार्मिक गणेश मन और आत्मा वासनाओं की मिट्टी व धूल विसर्जन जिसकी आप पूजा करते हैं उसका इतना अपमान ना करें 2606 0 Hindi :: हिंदी
गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं ? इसके पीछे भी है पौराणिक कथा जो मेरी माँ अक्सर सुनाया करती है। आज मैं उनकी बताई हुई कथा को आपसे साझा करती हूं। गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को देश भर में धूमधाम से मनायी जाती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेशजी का जन्म हुआ था, इस उपलक्ष्य में पूरे देश में धूमधाम से गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी क्यों मनाते हैं कहा जाता है कि पौराणिक काल में एक बार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्नान किया और उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की। गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा। तब व्यास जी ने कहा प्रभु आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है, अतः आप बिना समझे और त्रुटि हो तो निवारण करके ही श्लोक को लिपिबद्ध करना। आज के दिन से ही व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया।उसके 10 दिन के पश्चात अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य समाप्त हुआ। इन 10 दिनों में गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे।इस कारण 10 दिनों में उनका शरीर जड़वत हो गया और शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई, तब 10 दिन बाद गणेशजी ने सरस्वती नदी में स्नान कर अपने शरीर पर जमीं धूल और मिट्टी को साफ किया। जिस दिन गणेशजी ने लिखना आरंभ किया उस दिन भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसी उपलक्ष्य में हर साल इसी तिथि को गणेशजी को स्थापित किया जाता है और दस दिन मन, वचन कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनन्त चतुर्दशी पर विसर्जित कर दिया जाता है। इसका आध्यात्मिक महत्व है कि हम दस दिन संयम से जीवन व्यतीत करें और दस दिन पश्चात अपने मन और आत्मा पर जमी हुई वासनाओं की धूल और मिट्टी को प्रतिमा के साथ ही विसर्जित कर एक परिष्कृत और निर्मल मन और आत्मा के रूप को प्राप्त करें। इस कथा के माध्यम से मैं और एक बात आपसे निवेदन करना चाहूंगी कि विसर्जन के अवसर पर गणेश प्रतिमा को इधर-उधर विसर्जित ना करें एक नियत स्थान पर ही उनको विसर्जित करें। जिससे जनमानस की धार्मिक भावनाओं को आघात न पहुंचे। उनकी पूजा आप करते हैं उसका इतना अपमान ना करें।