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#कब तक सोएगा

महेश्वर उनियाल उत्तराखंडी 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य 78948 0 Hindi :: हिंदी

 "कब तक सोएगा"

उठ जा अब तो
तू कब तक सोएगा 
सुबह हो गई 
सूरज खिड़की से 
अंदर झांक रहा 
लोग कितने आगे 
निकल गए  हैं
तू भी निकल पड़ 
वरना जीवन भर
बैठकर रोएगा ll

कुछ है अभी भी 
जो बेखबर है 
समय की रफ्तार से 
कुछ और भी है 
जो सब कुछ जानते हैं 
पर भाग्य को अपना 
भविष्य मानते हैं 
पर तू समेट ले 
बिखरे पड़े मोतियों को 
वरना जो आज है 
कल उसे भी खोएगा ll

क्या इल्म नहीं तुझे 
इतिहास के उन पन्नों का 
स्वर्ण अक्षरों में 
लिखा है नाम जहां 
उन कर्म वीरों का 
सौगंध खाकर 
उठ, कदम बढ़ा 
अथक, अविराम 
परिश्रम करता जा 
यदि उठा अभी तो 
उठ ही जाएगा 
वरना कब तक ऐसे ही 
जुल्मों का बोझ ढोएगा 
उठ जा अब तो 
तू कब तक सोएगा ||

रचनाकार:-
महेश्वर उनियाल 
"उत्तराखंडी"

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