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अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली

Vipin Bansal 04 Jul 2023 कविताएँ समाजिक 5766 0 Hindi :: हिंदी

कविता = ( दिल्ली )

अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! 
दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !!
असहाय, बेबस पिता लाचार हो गया !  
पिता के ही सामने बेटा लाश हो गया !! 
दो ही दिन बाद थी उसकी शादी ! 
खुशियों का वो घर श्मशान हो गया !! 
सरेआम चाकुओं से गोद डाला ! 
दिल्ली शहर चलती फिरती लाश हो गया !! 
यही है गर दिल वालों की दिल्ली ! 
फिर हिजड़ा नाम क्यों बदनाम हो गया !! 
अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली !
दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! 

वहशियों का दिल्ली में राज हो गया ! 
कभी श्रदा कभी साक्षी ये मंज़र आम हो गया !! 
निर्भया के बाद भी न बदले हालात ! 
दिल्ली में पैदा रक्तबीज हो गया !! 
इन्हीं खबरों से यहाँ बिकता है अख़बार !
दिल्ली में इसका अब बाज़ार हो गया !! 
अख़बारों, खबरों के चैनलों में लगे चार चाँद ! 
यह अख़बारों, चैनलों का श्रृंगार हो गया !! 
दिल वालों की है दिल्ली ! 
अब जुमलों में शुमार हो गया !! 
अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! 
दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! 

दिल से ख़त्म कानून का ख़ौफ़ हो गया !  
क्या फांसी का फंदा इतना कमजोर हो गया !! 
निर्भया इंसाफ से भी न सिखा सबक़ !  
शायद यह इंसाफ़ गुजरे पल की बात हो गया !! 
अब चौराहे पर ही टांग दो इनको ! 
सब्र का बाँध अब कमज़ोर हो गया !! 
यही है भारत की राजधानी दिल्ली ! 
दिल्ली का चेहरा बेनक़ाब हो गया !! 
पेरिस बनाने चले थे दिल्ली ! 
यह तो कातिलों का शहर हो गया !! 
अंधी मूकबधिर अब हो गई दिल्ली ! 
दिल्ली का यह क्या हाल हो गया !! 

          विपिन बंसल

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