मां शारद को कर प्रणाम,
है काव्य पाठ का प्रथम प्रयास,
दबी हुई थी मन में एक छोटी सी आश,
जीत की होगी अब शुरुआत,
पर क्या जीत सहज सरल है आज?
जो मिली किसी को है अनायास,
स्वयं पर करना होगा फिर विश्वास
और बढ़ानी होगी काव्य रस की प्यास,
जीवन रण को सहज बनाने,
करने होंगे अविरल प्रयास,
करने होंगे अविरल प्रयास………
……………………. “प्रसाद” राजेश विश्वकर्मा