संदीप कुमार सिंह 09 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है. जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगे. 5186 0 Hindi :: हिंदी
#विधा:_दोहा छंद #"सृजन समीक्षार्थ प्रस्तुत" तेरी क्या औकात है,सरा हुआ है अक्ल। अब तक भी पीछे रहे,करते खाली नक्ल।। तेरी क्या औकात है,आए कभी न ढंग। सदा रहे बेढंग सा,तुम क्या जानो रंग।। तेरी क्या औकात है,रहे बेखबर यार। करते रहते फालतू,अच्छा है दुश्वार।। तेरी क्या औकात है,तुझको है अभिशाप। ज्यादा करो न चाह कर,लगा हुआ है पाप।। तेरी क्या औकात है,रहते सदा कुसंग। सिद्धि बुद्धि तो है नहीं,भाग्य हुआ है भंग।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....