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मेरा मुझमें कुछ नहीं

Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #रामबृक्ष कविता#मेरा मुझमें कुछ नहीं कविता रामबृक्ष 57240 0 Hindi :: हिंदी

   शीर्षक-मेरा मुझमें कुछ नहीं

मेरा मुझमें कुछ नहीं, नभ धरती संसार
यही भला मैं हूं यहां,सब तेरा उपकार
चलता है सब रात दिन,होता है दिन रात
चाह कर कोई क्या करे,हिला न पाए पात
तू ही तू सब जगह में,दसो दिशा ब्रह्मांड
नभ जल थल मण्डल बसे,पूजा यज्ञ कर्मकांड
मंदिर मस्जिद चर्च बसे,तीरथ धर्म सुधाम
तन मन जेके सांच है,हृदय बसे निष्काम
अन्दर बाहर रूह में,रोंम रोंम अवतार
मेरा मुझमें कुछ नहीं, नभ धरती संसार
अन्दर बाहर सांस संग,हृदय बना आवास
सुकर्म-वचन सुदर्शना, सबमें तेरा वास
कलरव कोयल कूक में पपिहा बोल मयूर
राग रागिनी कंठ में,मृग नभि में कस्तूर
कठपुतली सा खेल लें, जीवन का यह खेल
हुआ सबेरा खतम सब, सपनों का सब मेल
अजय विजय जगजीत तू,पाप पुण्य तू हार
मेरा मुझमें कुछ नहीं, नभ धरती संसार। 
चंचल मन है खोजता, अपना मूल स्वरूप
माया की हर वस्तु में ,खोजे रूप अनूप
इच्छा भरे न मन कभी,भरे कभी ना पेट
तरसते ही जीवन कटे, होते मटिया मेट
अपना अपना रट रटे,सपना यह संसार
अंत समय सब लगता है,धन दौलत बेकार
जाति धर्म को छोड़ दें,छोड़े मन का मोह
ईर्ष्या घृणा लोभ सदा,तोड़े मन का छोह
बड़ा बना तो क्या बना,भला बना यदि नाय
छोड़ भलाई गर जिये,न बड़ा भला कहाय
पैसा पीछे भाग कर,छोड़ा पर हित प्यार
मेरा मुझ में कुछ नहीं,सब मिथ्या बेकार। 


रचनाकार- रामवृक्ष, अम्बेडकरनगर। 

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