संदीप कुमार सिंह 29 May 2023 गीत समाजिक मेरा यह गीत समाज हित में है। जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभान्वित होंगें। 6156 0 Hindi :: हिंदी
सींच रहा विष बेल को,कैसा आया काल। कौआ को मोती मिले,बदल गई है चाल।। सींच रहा विष बेल को,नहीं इरादा नेक। विष तो देते विष सदा,फीका कर दे केक।। सींच रहा विष बेल को,लिए हुए उत्साह। मिले नहीं कुछ फायदा,सिर्फ मिलेगी आह।। सींच रहा विष बेल को,खास आस से यार। औंधे मुँह ही वह गिरे,श्रम जाए बेकार।। सींच रहा विष बेल को,कुछ भी हो पर सोच। घातक तो घातक रहे,खा जाता है लोच।। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा) बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....