Komal Kumari 11 Jun 2023 कविताएँ समाजिक 7213 0 Hindi :: हिंदी
पीरियड्स कहने को महज एक शब्द है पर इसमें छुपा लड़कियों का एक नया जहान है पर ना जाने क्यों लोग इस पीरियड्स को समझने से भागते हैं खुलकर समाज में बात नहीं करते। आज, मैं (पीरियड्स) समाज से बात करना चाहती हूं... *अशुद्ध मैं नहीं यह तुम्हारी सोच है हां हूं मैं एक खून का दाग पर यह दाग भी तो किसी के वंश का सबूत है। *हां आती हूं मैं हर महीने महामारी के रूप में जो यह समाज कभी समझ नहीं पाएगा। *हां होती है मुझे भी मेरी साथी की जरूरत पर मेरी साथी (Sanitary Napkins)को समाज छुपा कर देती है। *जब मैं आती हूं तो पूछ सारी लड़कियों को कितनी दर्द होती है ,टूटती हैं वह एक-एक शरीर की हड्डियां फिर भी उनके दर्द को समझे बिना बहाने का नाम दिया जाता है। *माना ऐसी हालत में सारा दिन काम कर जब लड़की रूम में आती है हो जाती है कभी सोने में नादानी जिसके कारण मैं चादर में दिख जाती हूं, तब लड़की को सोने का दंग नहीं है,का नाम दिया जाता है। *कर देते हो 7 दिन उस लड़की को अपने ही घर के आंगन से दूर जैसे मेरे आने की मैंने कोई गलती की हो। *रसोई जाकर वह अपने पसंद का खा नहीं सकती, मेरे आने पर रसोई अशुद्ध कैसे हो गया? अशुद्ध मैं नहीं, अशुद्ध यह जमाना है। *गई मंदिर तो रोका गया नहीं जा सकती तू अभी अशुद्ध है कहकर बंद कर दिया गया द्वार ,अशुद्ध मैं नहीं, अशुद्ध यह जमाना है। *उस लड़की की तकलीफ देख मुझे भी दर्द होता है पर मैं भी तो मजबूर हूं यौवन के नाम पर के नाम पर। * यौवन में रखा कदम तभी तो वह मां कहलाई वरना जब आना उसे बांझ के नाम से पुकारती ,अशुद्ध मैं नहीं अशुद्ध ये जमाना है। *मुझे भी तो समझो मैं भी होने वाली एक सामान्य प्रक्रिया हूं, मुझ पर इतनी बंदीशे मत डाला कर ,जब खुदा ने मुझे बनाया है तो मुझे वही रहने दे मुझे अलग सी पहचान ना दे।
#Mujhko pasand hai khud Ko hi padhna ek kitab hai mujhmein Jo mujhe aajmati hai. @ham Apne jivan ka...