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सनातन धर्म- परिचय

Jitendra Sharma 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक सनातन धर्म, सनातन क्या है, सनातन परिचय, जितेन्द्र शर्मा, Sanatan 33438 2 5 Hindi :: हिंदी

आलेख श्रंखला- "सनातन जो सत्य है!"
लेखक- जितेन्द्र शर्मा

निवेदन- यह आलेख श्रंखला मेरा अपने धर्म के विषय में अपने व्यक्तिगत विचार हैं जिसका उद्देश्य सनातन धर्म व इसकी विराटता का परिचय अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचाकर सत्य से अवगत कराना है। इसका सम्बन्ध किसी धर्म का अपमान या आलोचना कदाचित नहीं है और न ही किसी व्यक्ति अथवा समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाना है। यदि आप मेरी भावनाओं से सहमत हैं तो अधिक से अधिक लोगों को इस आलेख को पढ़ने के लिये प्रेरित करें।
धन्यवाद।

भाग एक- परिचय

धर्म सत्य है, ऐसा सत्य जो कभी परिवर्तित नहीं होता, अर्थात 'यतार्थ'।
यतार्थ दो शब्दों यत् + अर्थ से मिलकर बना है। अर्थात "जैसा है उसी अर्थ में या जैसा है वैसा ही।" अर्थात सत्य की वास्तविक रूप में स्वीकारोक्ति ही यतार्थ है। किन्तु सत्य समय के साथ परिवर्तित हो सकता है। जैसे दिन का होना सत्य है और रात का होना भी। सूर्य का प्राकट्य दिन है और सूर्य का अप्राकट्य रात। समय के साथ दिन ही रात में परिवर्तित हो गया। किन्तु सूर्य का होना यतार्थ है वह दिखाई दे अथवा नहीं। दिन और रात का होना सूर्य के प्राकट्य पर निर्भर है। किन्तु यहां सूर्य और दिन रात के उदाहरण का सम्बन्ध केवल उस सत्य पर प्रकाश डालना है जोकि धर्म की मूलभूत उत्पत्ती को समझने के लिये आवश्यक तत्व है। जिस प्रकार यतार्थ अपरिवर्तित होता है उसी प्रकार धर्म भी अपरिवर्तित है। 
***
धर्म की ग़लत व्याख्या ने धर्म और मानवता को बहुत हानि पहुंचाई है। "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना!" यह उक्ति मात्र भ्रमित कर वास्तविक समस्या पर चिन्तन से विलग करने के लिये है जबकि ज्ञात इतिहास में जितना रक्तपात मजहब के नाम पर हुआ है संभवतः इतना रक्तपात राजलिप्सा अथवा धनलिप्सा के लिए भी ना हुआ हो।
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मानव में धर्म और स्वर्ण के प्रति सर्वाधिक आशक्ति पाई जाती है। क्योंकि धर्म और स्वर्ण दोनों को ही मूल्यवान माना जाता है।
धर्म के सत्य को समझने के लिये धर्म तत्व को स्वर्ण तत्व के स्थान पर रखकर मूल्यांकन करें तो सनातन धर्म विशुद्ध स्वर्ण है। विशुद्ध स्वर्ण को अलग रूप, आभा या नाम देने के लिये उसके मूल रूप में परिवर्तन आवश्यक है। अलग रूप, आभा व नाम पाकर स्वर्ण अब आभूषण के रूप में उपलब्ध होगा। सम्भव है कि इसमें पहले की तुलना में अधिक आकर्षण प्रतीत हो और हमारे लिये यह विशुद्ध स्वर्ण से अधिक मूल्य में उपलब्ध हो। किन्तु सत्य इससे विपरीत है। आभूषण बनाने के लिये इसमें दूसरे तत्वों को मिलाया गया है जिससे स्वर्ण की मात्रा कम हो गई है तथा रूप रंग बदल गया है। इससे इसका मूल्य कम ही हुआ है। जैसे ही इसमें से खोट निकाल दिया जायेगा तो पुनः शुद्ध स्वर्ण प्राप्त होगा। ध्यान रहे स्वर्ण एक तत्व है और तत्व का निर्माण सम्भव नहीं है।
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सनातन धर्म भी तत्व के समान ही है, इसका न निर्माण किया जा सकता है न इसके मूल में परिवर्तन किया जा सकता है। सनातन धर्म भी सूर्य के समान ही यतार्थ है। ब्रह्माण्ड की उत्पती के साथ ही सनातन धर्म की भी उत्पत्ती हुई या यूं कहें तो अधिक उचित रहेगा कि ब्रह्माण्ड की उत्पती सनातन धर्म की व्यवस्था के अनुसार ही हुई। उसी व्यवस्था के अनुसार ही मानव शिशु के रूप में जन्म लेता है और अपनी जीवन यात्रा का समापन मृत्यु के रूप में करता है। 

कोई मनुष्य वेषभूषा, पूजा पद्धति या खानपान में परिवर्तन कर सनातन व्यवस्था से स्वयं को अलग नहीं कर सकता। क्योंकि सनातन व्यवस्था मानव को वेश भूषा, खानपान व पूजा पद्धति अपनाने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान करती है। किन्तु मानव सनातन व्यवस्था के विपरीत आचरण कर स्वयं को सनातन धर्म से विलग कर सकता है। अर्थात सनातन धर्म में वर्णित अकर्म अर्थात दोषों को अपनाकर वह किसी दूसरे धर्म या संस्कृति को अंगीकार कर सकता है।   और उन दोषों से निवृत्ति पाकर वह पुनः सनातन धर्म में स्थापित हो जायेगा। इसलिये किसी को सनातनी बनाया नहीं जा सकता है और न सनातनी बनाने की आवश्यकता है क्योंकि प्रत्येक मनुष्य जन्म से सनातनी है। विधर्मी ने स्वयं को अलग मान लिया है या सनातन संस्कृति से विपरीत आचरण कर स्वयं को विधर्मी की पहचान दे दी है। जैसे ही उसके दोष दूर होंगे वह शुद्ध स्वर्ण जैसा सनातनी बन जायेगा।
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क्रमस:

Comments & Reviews

Jitendra Sharma
Jitendra Sharma शानदार जानकारी।

1 year ago

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Jitendra Sharma
Jitendra Sharma अतुलनीय।

1 year ago

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