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मन कैसे तुम्हें समझाऊं-आती है व्याकुलता जिससे

Sudha Chaudhary 12 Jul 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत 6821 0 Hindi :: हिंदी

मन कैसे तुम्हें समझाऊं?
आती है व्याकुलता जिससे
रोती है अन्तरवता जिससे
अंक में जिसके खेल रही थी
स्वप्नों की कलिका लेकर के
तुरंग चाल से चलती थी
परिमल और सुंदरता जिससे।
मोह ने जिसके क्या न दिखाया
तुम आओगे खिल जाएगी
नभ में जीवन कह जाएंगी।
उल्लासों के दीपों में
सुप्त राग है जलता जिससे।
हृदय हमारा भीग गया है
कैसे तुम्हें यह समझाऊं
मांगू तुम ही से वो परिरम्भ
मिलती है शीतलता जिससे।

सुधा चौधरी 
बस्ती

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