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मेरा खयाल है मेरी चंदा-जिंदगी भर के लिए

Mohd meraj ansari 21 Sep 2023 कहानियाँ प्यार-महोब्बत प्यार, मोहब्बत, चंदा, चांद सा चेहरा, बचपन का प्यार, बचपना, समझ, प्यार का बिछड़ना,प्यार का मिलना, दोस्त, दोस्त से प्यार 25216 0 Hindi :: हिंदी

आज उसकी याद आ गयी और मैं उन बचपन के हसीन लम्हों में खो गया. वो थी ही इतनी खूबसूरत की उसे कोई एक बार देख ले तो जिंदगी भर के लिए उसका दीवाना हो जाए. किसी कवि को खूबसूरती पर कोई कविता लिखनी हो तो चंदा से बेहतर प्रेरणा का श्रोत मुझे नहीं लगता कोई होगा. इतनी तारीफ लिखू तो मुझे यकीन है अतिशयोक्ति नहीं होगी. उसकी खूबसूरती के लिए तो मैं पूरी किताब भी लिख दूँ तब भी मेरे ख्याल से पूरा नहीं होगा. कभी रम्भा, उर्वशी और मेनका को तो मैंने नहीं देखा लेकिन एक बात जरूर कहूँगा की हुस्न उन्होंने चंदा से ही उधार लिया होगा. तो चलते हैं हमारे बचपन में -  

हमारा घर एक ही कॉलोनी में आस-पास था. हम एक ही स्कूल में पढ़ा करते थे. स्कूल से वापस आने पर पहले चंदा का घर पड़ता था उसके बाद मेरा. सहपाठी थी और पड़ोसी भी तो स्कूल आना - जाना एक साथ ही होता था. मेरे लिए वो केवल मेरी दोस्त थी लेकिन उसके मन में मेरे लिए कुछ तो था जो मैं काफी वक्त तक समझ नहीं पाया. बात है उस वक्त की जब हम दूसरी कक्षा में पढ़ते थे. थोड़ी समझदारी आनी शुरू हो चुकी थी. साथ में खेलते थे. वो अक्सर मेरे घर खेलने आ जाया करती थी. 2 मकान छोड़ कर ही उसका घर था. मेरी माँ से वो बहुत ही प्यार से बात करती थी और माँ भी उसे बहुत चाहती थीं. स्कूल जाने के वक्त वो खिड़की पर मेरा इंतजार करती और जब तक मैं उसे दिख ना जाऊँ वो मेरे घर की ओर नजरें बिछाए रहती. जैसे ही मैं निकालता मुझे देख कर उसके चेहरे पर जो मुस्कान आती उससे प्यारी चीज तो मैंने आज तक नहीं देखी. जैसा नाम वैसा रूप. बिल्कुल चांद के जैसा गोल चमकदार चेहरा. आँखों की बनावट ऐसी जैसे साफ़ पानी की झील हो. लगता था कि अब छलक जाएगी. उस पर से पुतलियों का नीला रंग शोभा को और भी बढ़ा देता था. अब वो चांद जो धरती का चक्कर लगाता है उस पर भी दाग है तो मेरी चंदा कैसे बेदाग रहती. फ़िलहाल चंदा के गाल पर एक प्यारा सा तिल है जैसे कि चांद पर दाग है. लेकिन दोनों के ही दाग उनकी खूबसूरती को 4 चांद लगा देते हैं. फर्क़ इतना है कि चंदा जिसका चक्कर लगाती थी वो मैं था. ना जाने मुझ बे-बहरे इंसान में उसे क्या खूबी नजर आ गई जो मेरे लिए इतनी पागल हो गई. मैं था मस्त - मौला इंसान. अपनी ही धुन में रमा रहता था. 2 दोस्त थे संदीप और सौरभ जिनके साथ स्कूल का वक्त गुजारता या यूं कहें कि बर्बाद करता. क्यूंकि पढ़ाई से ज्यादा तो मस्ती में मन लगता था ना. लेकिन घर जाकर सारी मस्ती निकल जाती थी जब अब्बू की घूरती नजरें मुझ पर पड़ती. घर पहुंच कर सबसे पहले स्कूल से मिला गृह कार्य पूरा करता तभी खेलने जाने की इजाजत मिलती. लेकिन उधर चंदा मेरे इंतजार में पढ़ने ही ना बैठती की कहीं मैं खेलने पहुँच गया और वो पढ़ाई में व्यस्त रही तो मैं बिना खेले चला जाऊँगा. इस डर से वो कभी स्कूल से आ कर पढ़ने नहीं बैठती थी. उसका मेरे लिए पागलपन भी क़ाबिल-ए-तारीफ था. अक्सर ऐसा होता था कि वो मेरे इंतजार में पढ़ाई नहीं करती थी. फिर मैं पहुंच जाता तो खेलने मे लग जाती. और देर होने पर खाना खा कर सो जाती. गृह कार्य किए बिना जब स्कूल जाती तो मास्टर जी के डर से रोने लगती. मैं अपनी कॉपी उसे चुपके से दे देता. वो कॉपी दिखा कर बच जाती और मैं मार खा जाता. शाम को स्कूल से लौटते वक्त अक्सर वो मेरा हाथ पकड़ने की कोशिश करती. और जिस वक्त मेरा हाथ थाम लेती फिर तो उसके मुलायम मक्खन जैसे हाथ छोड़ने का मेरा दिल नहीं करता. एक दिन तो उसके बस्ते से मेरी 4 कॉपियां निकली. फिर जो मास्टर जी ने दोनों को मारा उसी दिन से उसका मेरा खेलने आने का इंतजार छुट गया. और मैं भी अपना गृह कार्य करके जब उसके साथ खेलने जाता तो उसकी मदद कर देता था पढ़ाई में. उसके बाद तो खेलना ही रहता था.  

वक्त गुज़रता गया और अब हम पांचवी मे दाखिल हो चुके थे. धीरे-धीरे हम कब बड़े हुए पता ही ना चला. अब मैं टिफिन का डब्बा लेकर स्कूल नहीं जाता था. हमारा दोस्त सौरभ टिफिन लाता था तो उसी में हम तीनों दोस्त खा लिया करते थे. एक दिन की बात है. चंदा अपनी सहेलियों के साथ अपना टिफिन खा रही थी तो उसने हम लोगों को देखा कि एक ही टिफिन मे तीनों टूट पड़े हैं तो उसने मुझे अपने पास बुलाया. मैं नहीं जा रहा था तो संदीप ने मुझे समझाया फिर मैं गया. चंदा ने मुझे अपने पास बिठाया और अपने टिफिन से मुझे अपने हाथ से खिलाने लगी. जब हम खा चुके तो वो बोली कि कल से तुम मेरे साथ ही खाना खाना. मुझे मम्मी ढेर सारा खाना दे देती हैं. मैंने मना करने को सोचा तो मेरे दोस्तों ने ज़िद कर के मुझे उसके साथ खाने के लिए मना लिया. अगले दिन से उसके टिफिन का भार और बढ़ गया इतना तो मुझे ध्यान है. ऐसा ही चलता रहा और कुछ साल और बीत गए हमे बिना बताये.  

अब हम नौवीं मे दाखिल हो चुके थे. चंदा का चांद सा चेहरा और उसकी खूबसूरती में यौवन ने भी जगह ले ली थी. अब तो उसकी खूबसूरती का बयान शब्दों से नहीं किया जा सकता था. बचपन में जो लड़की केवल मेरी दोस्त हुआ करती थी अब ना जाने मैं उसकी ओर आकर्षित कैसे होने लगा था. शायद ये उम्र ही ऐसी थी. ऐसे ही एक दिन की बात है मैं किसी काम से बाहर गया हुआ था कुछ सामान लाने के लिए शाम के 4 बज रहे थे कि अचानक वो मेरे सामने आकर खड़ी हो गई और मुझसे पूछी की तुम यहां क्या कर रहे हो तो मैंने भी उससे पूछ लिया कि तुम यहाँ क्या कर रही हो तो उसने कहा कि कुछ काम से आयी थी फिर उसने साथ में घर चलने की ज़िद की तो मैं उसके साथ - साथ चलने लगा. हमारे घर से कुछ दूर पहले एक खेल का मैदान था. जब हम वहाँ पहुंचे तो उसने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था. और फिर मैंने देखा कि मेरा दोस्त संदीप वहीँ दूसरी तरफ से कहीं जा रहा था. उसने हमें देखा और मेरी तरफ चला आ रहा था तो मैंने चंदा से कहा कि अब मेरा हाथ मत छोड़ना तो उसने कहा - क्यूँ? फिर उसकी नजर भी संदीप पर पड़ी तो उसने मेरा हाथ और ज़ोर से पकड़ लिया. मैने चंदा की तरफ देखा और मन ही मन कहा कि ये लड़की तो सच में पागल है. फिर संदीप ने भी पास आकर मेरे दूसरे हाथ को पकड़ लिया. अब दोनों में मुझे लेकर खिंचा - तानी शुरू हो गई. और बहस होने लगी - मेरे साथ चल मेरे साथ चल. मैंने चंदा से कहा कि तुम जाओ मैं आता हूँ तो वो जाने का नाम ही नहीं ले रही थी. फिर बहुत समझाया तो गुस्सा होकर मेरा हाथ झटक कर चली गई. फिर मैं संदीप के साथ गया और चाय पीकर जब घर लौटा तो ग़ज़ब हो गया. जो सामान लाना था वो लाना ही भूल गया. घर पर बहुत डांट पड़ी. अब तो ये किस्सा आए दिन होने लगा. घर वाले बोलते कुछ थे और मैं कर के कुछ आता था. जैसे मानो मेरा दिमाग कुछ काम ही ना कर रहा हो. जब अगली बार मैं चंदा से मिला तो उससे कह ही दिया कि तुम दिन भर में एक बार जरूर मुझे दिख जाया करो. तुम नहीं दिखती तो मेरा कोई काम ढंग से नहीं होता. फिर मैंने उससे पूछा कि क्या तुम्हें भी ऐसा कुछ महसूस होता है? उसने कहा - मुझसे तो पूछो ही मत कि मेरे साथ क्या-क्या होता है. ना मैं खा पाती हूँ ना सो पाती हूँ ना जी पाती हूँ नाहीं मर पाती हूँ और ना कुछ कर पाती हूँ. उसकी बातों से उसकी मेरे लिए बेचैनी साफ़ ज़ाहिर हो रही थी. आखिर उसने कह ही दिया कि तुम कभी मुझसे दूर मत होना. दूर जाना तो भी दूर ना होना. उसकी इस बेचैनी और कशमकश में उसका रूप और भी निखर गया. मन में एक अजीब सी उलझन होने लगी. दूर हो जाने की बात से डर सा लगने लगा. ना जाने कैसे लेकिन हम दोनों एक-दूसरे से दिल - ही - दिल में प्रेम करने लगे थे. समझ तो हमे अभी भी इस बात की नहीं थी कि प्यार क्या होता है? कैसे होता है? बस एक दूसरे से कभी दूर नहीं होना चाहते थे.  

एक दिन मेरे एक दोस्त के बहन की शादी में गया हुआ था. साथ में संदीप और सौरभ भी थे. हम कोल्ड ड्रिंक पी रहे थे कि थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि चंदा भी वहाँ आई हुई है अपने दोस्तों के साथ तो मैं उसके सामने गया और उस से बोला कि लो पी लो. इस पर उसकी दोस्त ने धीरे से उसके कान में कुछ कहा. फिर उसने मेरे हाथ से ग्लास लिया और पी गई. फिर हम सब खाना खाने के लिए इधर - उधर गुम हो गए और मैं बस चंदा को ही देखता रहा. उस शादी में मुझे और कोई नज़र ही नहीं आ रहा था नजाने क्यूँ मेरी नजर ही नहीं हट रही थी. फिर मेरे दोस्तों ने मुझे कहा कि चल खाना खा लेते हैं और मैं खाने के लिए गया ही था कि एक छोटा सा लड़का आया और मुझसे बोला कि कोई तुम्हें बुला रहा है. मैं उसके पीछे गया तो देखा कि वो चंदा ही थी. मैंने पूछा कि क्या बात है? उसने कहा कि सब खाने के लिए चले गए और मैं अकेली बच गई हूं. तुम मुझे घर पहुंचा दोगे? मैंने कहा ठीक है. मैं साथ चलता हूँ. तो मैं उसे घर लेकर जाने लगा. घर कुछ ही दूरी पर था. रास्ते में थोड़ा अंधेरा भी था. हम साथ चलते रहे. उसने मेरा हाथ पकड़ा हुआ था. जब हम घर पहुंचने वाले थे तो उसने कहा कि अब तुम जाओ मैं चली जाऊँगी तो मैंने कहा ठीक है जाओ. वो दो कदम ही आगे गई और फिर वापस आयी. मैंने पूछा अब क्या हुआ तो उसने कुछ कहा नहीं बस देखती ही रही फिर जल्दी से उसने मेरे गाल पर चूमा और दौड़ कर घर की ओर भागी. मैं चुप खड़ा ये सोचता रहा कि ये मेरे साथ क्या हुआ अभी? कि अचानक से मुझे कोई मारने लगा. मैंने जब पीछे मुड़ के देखा तो मेरे दोस्त थे संदीप और सौरभ मार रहे थे और पूछ रहे थे की भाई बात यहां तक पहुंच गई और हमे मालूम भी नहीं. अब तो हमे तेरे तरफ से पार्टी चाहिए। मैने पार्टी देने से बचने के लिए बहाना बनाते हुए कहा कि अभी तो दावत खा कर आए हो। वो जिद करने लगे की दावत तो किसी और की थी वो भी शादी की खुशी में। हमे तो पार्टी इसलिए चाहिए की हमारे दोस्त को उसका पहला किस मिला है उसकी प्रेमिका से। मैने टालते हुए कहा कि ऐसा कुछ नही है भाई। वो मेरी प्रेमिका नही है हम बस दोस्त हैं तुमलोग तो जानते ही हो। फिर वो मुझे समझाने लगे की दोस्त जो अभी तुम दोनो के बीच हुआ है वो सिर्फ दोस्तों के बीच कभी नही होता। वो तुमसे प्यार करती है। मैं स्तब्ध रह गया। क्या इनकी बात सच है? क्या यही प्यार है? क्या इसी मनोभाव को प्रेम कहते हैं? बहुत से सवाल उठने लगे मन में। जिसका जवाब दोस्तों ने दिया तो था लेकिन मन को सुकून मिलने वाला जवाब मुझे अभी तक नही मिला था। शायद मन को सुकून देने वाला जवाब सिर्फ चंदा जानती थी। लेकिन चंदा से पूछूं कैसे। कहीं उसे मेरी बात गलत न समझ आ जाए। कहीं वो मुझसे नाराज़ ना हो जाए। लेकिन इन सवालों का जवाब तो जानना ही था मुझे किसी भी हाल में। खैर रात बीती अगले दिन दोस्तों ने पार्टी लिए बीनामेरा पीछा नही छोड़ा। समोसा और कोल्डड्रिंक की दावत उड़ाई गई। और सवाल को मन में दबाए हुए हम 10वीं में पहुंच गए। अब बोर्ड के एग्जाम की टेंशन शुरू हुई। पढ़ाई में मन लगाना चाहें तभी किसी दोस्त का फोन आ जाता या दोस्त खुद मेरे घर आ धमकता। फिर चलो घूमने खेलने। हो चुकी पढ़ाई। अर्धवार्षिक बीता और किसी तरह सब पास हो गए। लगा कि थोड़ी सी और मेहनत कर देंगे तो वार्षिक में पास हो ही जाएंगे। मेरा जन्मदिन आया और दोस्तों की जुबान फिर लटकने लगी पार्टी के लिए। मैने बोला कि पार्टी दूंगा। लेकिन लूटमार मत करना। सब मान गए। चंदा को भी मेरा जन्मदिन याद था। शाम को मैने एक रेस्टोरेंट में पार्टी रखी सब दोस्तो ने मुझे गिफ्ट दिया और पार्टी कर के वापस जाने लगे। चंदा खाली हाथ आई थी। ना मैने उससे किसी गिफ्ट की मांग की और न मेरे दोस्तों में से किसी ने कोई सवाल किया। सब अपने रास्ते चल दिए और हम दोनो अपने घर की ओर। घर पहुंचने से थोड़ी देर पहले चंदा ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी ओर खींचा। मेरी आंखों में आंखें डाल कर एकटक देखने लगी। मैं हिल नहीं पा रहा था। मुझे जैसे करेंट सा लग गया था बदन पूरा सुन हो गया था। अचानक उसके मुलायम गुलाबी हाथ हिले और कुछ अल्फाज उनसे निकले। जो मेरे कानों में पड़े तो मेरे पैर कांपने शुरू हो गए। वो अल्फाज थे– "आई लव यू"। मेरी तो खुशी का ठिकाना न रहा। ये था मेरा सबसे बड़ा जन्मदिन का तोहफा। जब मुझे मेरी मोहब्बत का पक्का सबूत मिला था। मेरे सारे सवाल जो मेरे दिमाग में घूमते रहते थे और जिनकी वजह से मेरा मन किसी भी काम में नही लगता था उनका जवाब आज चंदा ने मुझे दे दिया था। मेरे दिल में जो सुकून जागा था मुझे उसी सुकून की तलाश जाने कब से थी। अब हम दोनो चंदा के घर तक पहुंच गए। लेकिन एक दूसरे को छोड़ कर घर जाना हमसे गंवारा नही हो पा रहा था। लेकिन जाना तो था ही। अब सुकून तो बस सवाल का जवाब सुन कर मिला था। हाल तो अब बिगड़ने लगा कि अब आगे क्या होगा। जल्दी से मुलाकात हो। ये रात खत्म क्यों नही होती। दिन जल्दी शुरू क्यों नही हो रहा रातों की नींद उड़ गई। रात के 1 बजे मैं ये सोच रहा था कि क्या चंदा का भी यही हाल हो रहा होगा। सोचते सोचते कब नींद आई और कब सुबह हो गई पता ही नही चला। कुछ दिन बाद हमारे बोर्ड एग्जाम की डेटशीट आ गई। सारे दोस्त एग्जाम की तैयारी का शेड्यूल बनाने लगे। ग्रुप स्टडी का प्लान बनने लगा। किसी को समझ नही आ रहा था कि इतने कम समय में कोर्स कैसे पूरा करें। फेल होने का डर सबके मन में बैठ गया। आखिर पूरा साल मौज मस्ती में बिताया था तो अंत मे डर तो लगना ही था। पढ़ाई करने बैठे की तभी चंदा मेसेज आया– मुझे बाजार जाना है तुम चलोगे क्या? मैने मन में सोचा– हो चुकी पढ़ाई। चल दिया उसके साथ। बाजार गए चंदा ने अपनी खरीदारी की और हम वापस आ गए। इस काम में हमारे डेढ़ घंटे बिगड़ गए। फिर घर पहुंच कर पढ़ाई करने बैठा तो दिमाग में सिर्फ चंदा चंदा घूम रही थी। पढ़ाई नही हो पाई। इसी तरह दिन बीते और एग्जाम आ गए। हमने एग्जाम दिए और दिमाग में जितना आता था लिख कर चले आते थे। रिजल्ट आया और सब बड़ी मुश्किल से पास हुए। बस यूं समझिए कि कुछ नंबर और काम होते तो हम फिर से उसी क्लास में पढ़ाई कर रहे होते। अब ऐसे नंबरों से अब्बू बहुत नाराज हुए। उनकी नाराजगी कैसे दूर करूं समझ नही आ रहा था। फेल हुआ होता तो दुबारा मेहनत कर के पढ़ाई करता और एग्जाम देकर अच्छे नंबर लाता। लेकिन नैय्या में तो छेद हो चुका था। ना डूबे ही थे और न तैर पाए थे। बार छेद वाली नैया में सवार थे। अब्बू की नाराजगी देख कर मेरा मन आगे पढ़ने को नही कर रहा था। मैने अब सोच लिया था की मुझसे अब पढ़ाई तो नही होने वाली तो अब कोई काम सिख लेता हूं। मेरे मामा का लड़का अहमदाबाद में काम करता था। मैने उससे बात की और उसके पास चला आया काम सीखने। शुरुआत में तो बहुत मेहनत करनी पड़ी क्योंकि सबसे नया मैं ही था वहां। सबलोग साथ में रहते थे और खाना भी सबका एक साथ ही बनता था। 1 बेडरूम और 1 किचन के साथ छोटे से आंगन में टॉयलेट और बाथरूम। और रहने वाले 10 लोग। मुझे बर्तन धोने और सब्जी काटने के काम में लगा दिया जाता था। सुबह सबसे पहले इसी काम के लिए जगा दिया जाता था। दिन में मेहनत इतनी कि शाम को कई बार तो ऐसा हुआ कि खाना खाने का मन भी नही हुआ और बिना खाए ही सो गया। धीरे धीरे आदत हो गई। चंदा से कभी कभी बातें हो जाया करती थीं। सीनियर के सामने बात करना मतलब डांट सुनने वाला काम करना। इसलिए हफ्ते में कभी छुप छुपा के बात कर लेता था। ज्यादा समय न दे पाने की वजह से चंदा की जिंदगी में क्या बीत रहा था उसकी जानकारी मुझे नही हो रही थी। 6 महीने बीते और एक दिन चंदा का मेसेज आया– मेरे घर वालों ने मेरी शादी फिक्स कर दी है। मेरी जिंदगी में मुझे लगने वाले झटकों में से ये सबसे बड़ा झटका था। मैं चंदा को कुछ जवाब नहीं दे सका। 2 दिन तक मेरे दिमाग में वही बात घूमती रही। ना खाना खाया न पानी ही पी रहा था। तबीयत खराब हो गई। डॉक्टर को दिखाया और दवाई लिया। दवाई का कुछ असर नहीं हो रहा था क्योंकि खाना ही नही खा रहा था। फिर मुझे घर भेज दिया गया। घर गया तो घर वालों से कुछ कहने की हिम्मत नही हुई। किस मुंह से कहता कि मुझे चंदा चाहिए। पढ़ाई में फेल होकर काम करने निकला था। काम भी ठीक से नहीं सीख पाया था। अब चंदा की बात घर पर करके घर वालो को और नाराज करने की हिम्मत नही थी मुझमें। 2 महीने घर पर ही रहा। आराम किया और तबियत ठीक हुई। चंदा से मिलना चाहता था लेकिन कैसे मिलता और क्या कहता? मैं उसे पाने के लिए कुछ कर ही नही सकता था। फिर किस मुंह से उसका सामना करता। उसे मिले बिना ही वापस अहमदाबाद आ गया। चंदा को भुला कर अपने काम में लग गया। 3 महीने बाद मुझे खबर मिली कि चंदा की शादी हो गई। ये खबर सुनकर उस रात मैं अकेले में बहुत रोया। बचपन का प्यार जिसकी खातिर मैने अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान नहीं दिया था और अपना करियर बर्बाद कर लिया वो भी मुझे नही मिली। रात भाई रोया और सुबह अफसोस में डूब गया कि काश मैने अपने करियर पर ध्यान दिया होता तो आज मेरी चंदा मुझे छोड़कर किसी और की न होती। अब अफसोस करके क्या ही कर सकते थे। किसी तरह से उसे भुलाया और जिस काम में लगा था उसे अच्छे से सीखा। 5 साल बीत गए। चंदा की कोई खबर नहीं लिया। अब मैं उसे अपने दिमाग से पूरी तरह से निकल चुका था लेकिन दिल में तो वो अब भी थी। मैं अब काम अच्छे से सीख चुका था और तनख्वाह भी बढ़ चुकी थी। अब मेरे घर वाले मेरी शादी के लिए सोचने लगे। रिश्तेदारी में एक लड़की उन्हें पसंद आई। उन्होंने मुझसे कहा कि इससे शादी कर लो। मैने बिना कुछ पूछे हां कर दिया। जब मेरी चाहता चंदा थी और वही अब मेरी ज़िंदगी में नही रही तो अब क्या किसी को मन करूं। समय बिता और मेरी शादी हो गई। चंदा आज भी मेरे दिल के किसी कोने में रहती है और कभी कभी आज भी दस्तक देती है। उस समय मैं अपनी पत्नी से बात कर लेता हूं और ये मान कर संतोष कर लेता हूं कि तुम ही मेरी चंदा हो।

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