मन में व्याकुलता सी होती
उर में पीड़ा छुप के रोती
थामें है प्रेम की डोरी से
बिखरे ना रिश्तों के मोती
फिर भी अपना कोई रूठे जब
रिश्तों का दामन छूटे जब
हर सिसकी आंसू भरती है
मन में संताप भी करती है
हर बात वहीं बढ़ जाती है
जिद पर जो भी अड़ जाती है
जिस मोड़ पे कोई अपना छूटे
वहां रुक जाना ही बेहतर है
जहां मान किसी का रह जाए
वहां झुक जाना ही बेहतर है
सच्ची प्रीत जहां होती
तकरार वहीं पे होती है
दुनिया से जीत गए लेकिन
बस हार वहीं पे होती है