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जलने लगे अलाव अब ठंढ़ी चारों और-थड़थड़ हैं तन कांपते

संदीप कुमार सिंह 03 Jan 2024 कविताएँ समाजिक दोहा छंद # दोहा लाजवाब # दोहा सृजन # दोहा सागर # दोहा धुरंधर # दोहा सम्राट # रामायण के दोहे # लाजवाब दोहे # पुराने दोहे # नए दोहे # महाभारत के दोहे # कबीर के दोहे #रहीम के दोहे # How to open you tube channel? How to open Facebook Page?How to open you tube channel?How to open saving account in SBI?How to open zero balance account in Kotak Mahendra? 3058 0 Hindi :: हिंदी

दोहा छंद 
जलने लगे अलाव अब,ठंढ़ी चारों और।
थड़थड़ हैं तन कांपते, नहीं बंधते कौर।।

जलने लगे अलाव अब,अमृत तुल्य है आग।
बिना आग के जल नहीं,गाते सब यह राग।।

जलने लगे अलाव अब, शीत लहर है जोर।
 ओस भरा परिवेश है, डूब गया है भोर।।

जलने लगे अलाव अब, होते नहीं प्रभात।
रहे आग के पास सब, लम्बी होती रात।।

जलने लगे अलाव अब,इससे बचती जान।
त्राहि त्राहि सब लोग हैं,करें दया भगवान।।
(स्वरचित मौलिक)
संदीप कुमार सिंह✍🏼
जिला:_समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार

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