राहुल गर्ग 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक # maa poem #maa par kavita #mother poem #rahul garg poem 46949 0 Hindi :: हिंदी
मेरी अधूरी सी रातें , मेरी आखों के सपने मेरी उलझी सी जिंदगी को वह खूब पहचानती है। मेरी माँ है वो सब कुछ जानती है।। चंद रूपये की खातिर हर रोज निकलता हूँ कुछ ना पाकर भी भूखा नही सोता हूँ चार सिक्के वो जेब में हर रोज डालती है। मेरी माँ है वो सब कुछ जानती है।। बड़ा होने की जिम्मेदारी धीरे धीरे निभाता हूँ पर उसके लिए अभी भी बिट्टू ही कहलाता हूँ पालने के बच्चे जैसा मुझे वो पालती है। मेरी माँ है वो सब कुछ जानती है।। दूर होती है सब बाधा और किस्मत मेरी बनती है उसकी दुआएँ ही तो है जो मेरे साथ चलती है बुरा साया हो सर पे तो झाड़ू से टाल देती है। मेरी माँ है वो सब कुछ जानती है ।। न राजा बन पाता हूँ न रंक ही रह जाता हूँ उतावली सी जिंदगी में सब कुछ हार जाता हूँ जीत लूंगा जहाँ को एक दिन ऐसा वो मानती है। मेरी माँ है वो सब कुछ जानती है।।