Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक उरेब उपाधि 80410 0 Hindi :: हिंदी
बस, वह तो ऐसा ही है। कहते बुझारत लोगों को, बहुत सुना है। लोगों ने उसमें क्या देखा, क्या चुना है? लोगों ने उसे खुद भूना, या वह खुद भुना है? निज निर्माण का नीड़, कैसे बुना है? ये उलटवांसी का, बैसा ही है। बस, वह तो ऐसा ही है। यह सभी का हाल है। दाल काली है, या काले में दाल है? सोचने के सोच की, उरेब चाल है। सब गोल- गाल है, यह सब गोल- गाल है। कुछ बताओ तो सही, चाहे कैसा ही है? बस, वह तो ऐसा ही है। झूठा, चोर, बेईमान, कह दो नमक हराम। इस तगमे को मत बनाओ, तकिया- कलाम। सोच की मोच को, दो लगाम। सुधरने का कत्ल, हो जाता खुलेआम। पर कुछ न कुछ, तो कहते जैसा ही है। बस, वह तो ऐसा ही है। बस, वह है तो ऐसा ही।