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सच्ची खुशियों का स्रोत सेवा समर्पण और आदर्शता

Prince 24 Jun 2023 कहानियाँ समाजिक #हिन्दी कहानियाँ #दान की खुशी 4908 0 Hindi :: हिंदी

एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह बहुत ही साधारण जीवन जीती थी और बहुत गरीब थी। उसके पास बहुत कम संपत्ति थी, लेकिन उसके पास एक बहुत ही बड़ा मन था।

एक दिन उसे अपने गांव के सबसे गरीब बच्चे की आवाज सुनाई दी। उसने देखा कि उस बच्चे को बहुत भूख लगी हुई है और वह बड़ी मेहनत से एक रोटी खरीदने की कोशिश कर रहा है। बुढ़िया ने तुरंत उसे अपनी आंखों से देखकर खुद को रोका। उसने बच्चे के पास जाकर उसे खाने के लिए अपनी हाथो से ताला खोल दिया।

बच्चा बहुत ही चकित हो गया और उसके चेहरे पर खुशी का चमक आ गयी। वह रोटी खाकर खुदा का धन्यवाद करने बाला बच्चा था। वह बुढ़िया ने बच्चे को गले लगाया और उसे आशीर्वाद दिया। बच्चा बहुत खुश था क्योंकि वह पहली बार अपने जीवन में इतनी मेहनत के बावजूद खाने को मिली थी।

इस घटना के बाद, बुढ़िया को बहुतइस घटना के बाद, बुढ़िया को बहुत आश्चर्यजनक बात समझ में आई। वह सोचने लगी कि उस छोटे से बच्चे ने बड़े ही साहस और समर्पण के साथ अपनी भूख मिटाने की कोशिश की थी। वह यह समझ गई कि वास्तव में धन और संपत्ति से अधिक महत्वपूर्ण हैं समर्पण और सहायता की भावना।

उस दिन से वह बुढ़िया ने अपना नया लक्ष्य तय कर लिया। उसने गरीब और असहाय लोगों की मदद करने का फैसला किया। वह अपनी कमजोर बॉडी के बावजूद उठ खड़ी हो गई और अपने गांव में ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने लगी।

बुढ़िया ने एक अल्पाहार केंद्र खोला, जहां वह गरीबों को खाना और पानी प्रदान करती थी। उसने भीख मांगने वाले लोगों को रोजगार देने के लिए कुछ साधारण काम करने का भी इंतज़ाम किया।

उसके सामर्थ्य और समर्पण की वजह से उसके अल्पाहार केंद्र में दिन-प्रतिदिन बढ़ोतरी हुई। लोग उसे 'सेवा देवी' कहने लगे और उसकी सेवाओं को प्रकाशित करने लगे। बुढ़िया ने जीवन में खुशियों का एक नया आयाम देखा।

धीरे-धीरे, उसकी सेवाएं न सिर्फ उसके गांव में, बल्कि पड़ोसी गांवों में भी फैलने लगीं। उसकी दया और समर्पण की गाथा बड़ी होती गई। लोगों ने उसे साथी और मार्गदर्शक के रूप में मान्यता दी।

एक दिन, बुढ़िया को एक गंभीर बीमारी हुई और उसे अपने बिस्तर पर आराम करना पड़ा। गांव के लोगों ने उसकी चिंता करते हुए उसे अपनी सेवाओं से बचने के लिए मदद करने का निर्णय लिया।

लोगों ने उसकी सेवाओं को जारी रखा और उसके अल्पाहार केंद्र की देखभाल की। वे उसके साथियों बन गए और उसकी आदर्शता आगे बढ़ाने के लिए मिलकर काम करने लगे।

ऐसे ही समय बीतता रहा, जब बुढ़िया की सेहत सुधारती गई। उसके चरम संकट के दिनों में भी उसने देखा कि उसके पास समर्पण, सहायता और सेवा की बाढ़ हो गई थी।

आखिरकार, उसे अपनी यात्रा का आखिरी चरण आखिरकार, उसे अपनी यात्रा का आखिरी चरण पूरा करने का समय आया। उसके आसपास लोगों ने उसे गर्व महसूस कराया, क्योंकि वह अपने जीवन में इतनी उच्च आदर्शता और मान्यता प्राप्त कर चुकी थी। उसकी यात्रा का अंत नजदीक आने पर, उसे एक सभा में बुलाया गया।

उस सभा में उसे सभी लोगों ने विशेष सम्मान दिया। एक युवा लड़का उसके पास आया और उससे पूछा, "दादीजी, आपने इतनी गरीबी के बावजूद भलाई की क्या वजह है?"

बुढ़िया मुस्कान देते हुए बोली, "मेरे बेटे, संपत्ति की तुलना में मेरे पास कम था, लेकिन धन की तुलना में मेरे पास सेवाओं की बेढ़ियां थीं। जब हम सहायता और समर्पण के रास्ते पर चलते हैं, तो हम सबके दिलों को छूने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं। जीवन का सच्चा आनंद सेवाओं में छिपा होता है, और यही मेरा सत्य है।"

उसके शब्दों ने सभी के दिलों को छू लिया। उसे बुढ़िया ने दिखाया कि सच्ची धनीता और आदर्शता समर्पणता होती है, जो संपत्ति या धन से मापी नहीं जा सकती। वह अनन्य आनंद और सुख का स्रोत है, जो केवल सेवा और समर्पण में पाया जा सकता है।

बुढ़िया की कथा हमें सिखाती है कि धन और संपत्ति मानवीय खुशियों का एकमात्र स्रोत नहीं हैं। यदि हम अपनी शक्तियों, सामर्थ्य का उपयोग सही तरीके से करें और दूसरों की सहायता करें, तो हम असली धनी बन सकते हैं। बुढ़िया ने हमें यह सिखाया है कि हमारी खुशियाँ और समृद्धि उसकी खामियों पर नहीं निर्भर करती हैं, बल्कि हमारे सामर्थ्य, सेवा और समर्पण के आधार पर निर्भर करती हैं।

इस कथा से हमें यह समझ मिलता है कि हमें दूसरों की मदद करने का मौका नहीं छोड़ना चाहिए और अपने सामर्थ्य और संपत्ति का उचित उपयोग करना चाहिए। सच्ची खुशियों का स्रोत सेवा, समर्पण और आदर्शता में निहित होता है, और जब हम इन मूल्यों के साथ जीने का निर्णय लेते हैं, तो हम सच्ची मानवीय समृद्धि को प्राप्त कर सकते हैं।

                 ~Prince

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