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निश्चय कर त्रिशूल उठा

Rupesh Singh Lostom 03 Apr 2023 कविताएँ समाजिक निश्चय कर 7465 0 Hindi :: हिंदी

निश्चय कर त्रिशूल उठा 
वार कर संधार कर 
अंगारों सा जल रहा 
ज्वला बन धधक रहा 
अज्ञानी अनुशंधान से 
जोत जला सोच जगा 
निश्चय कर के चलना होगा 
पीड़ित मन को जलना होगा !

अंधकार को दूर भगा 
निश्चय ही बदलना होगा 
कहा हुनर के मोल हैं जग में 
सच के आग में जलना होगा 
लड़ना होगा अन्तः मन से 
राख बन मचलना होगा 
निश्चय कर के चलना होगा 
पीड़ित मन को जलना होगा !!

सपनो में पंख उडान अतरंग 
आश्मान को चखना होगा 
काल के आखँ से 
आखँ मिला के 
तलवारों पे चलना होगा 
मन के बिग्रह छोड़ के 
तन के साथ झुलसना होगा 
निश्चय कर के चलना होगा 
पीडित मन को जलना होगा !

तप्ती सूरज के आँच से 
मौत से भी अकड़ना होगा 
अनगिनत पैरों के विच 
तुम को तेज निकलना होगा 
बिन थके बिन हारे बस 
निश्चय कर के चलना होगा 
पीड़ित मन को जलना होगा !!

बहुत कठिन हैं जीवन की राहें 
सिना ताने चलना होगा 
उफ़नती लावों के बिच 
बच के तुम्हे निकलना होगा 
वसंत आने से पहले 
पतझड़ को निगला होगा बस 
निश्चय कर के चलना होगा 
पीड़ित मन को जलना होगा !

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