DINESH KUMAR KEER 19 Jun 2023 कहानियाँ समाजिक 6391 0 Hindi :: हिंदी
छोटा पापा वो तीनों खूब शॉपिंग - वॉपिंग करके घर लौटे। पत्नी सीमा जी ने घर के दरवाजे पर लगा ताला खोला, खरीदी कर के लाए हुए सभी समानों को रखा और रसोई घर में पानी लेने के लिए चली गई। हार थक कर चूर सोफे पर निढ़ाल सी पड़ी बड़ी बहन पुष्पा दीदी अपना पर्स खोलकर पैसे देती हुई भाई से बोली, "ये ले छोटे।" "ये क्या है पुष्पा दीदी ?" " मेरी साड़ी के पैसे हैं, तूने दुकान में मेरी और सीमा भाभी जी की साड़ी का बिल इकठ्ठा पे कर दिया था ना। वही वाले।" "तो? अब मैं तुमसे इसके पैसे लूँगा। भूल गईं क्या कितना किया तुमने मेरे लिये। पापा से छिपाकर कॉलेज के साथ-साथ और दूसरे कोर्स की भी फीस दे जातीं थीं। माँ नहीं थी हमारी पर तुम तो मेरे लिये माँ भी बन गईं। तुम ना होतीं तो आज मैं इतना कामयाब ना होता। और तुम मुझे.....।" " चुप कर, छोटा है मुझसे छोटा ही रहेगा। चल रख ये।" "अच्छा ये बताओ दीदी, पापा जब कुछ दिलाते थे तो क्या तुम उन्हें भी पैसे देतीं थीं?" "अरे! उन्हें क्यूँ देती भला? पापा को भी कोई पैसे देता है क्या? " बिल्कुल सही कहा, तो ये समझ लो की आज से मैं तुम्हारा छोटा पापा हूँ। अब कोई बहस नहीं होगी।" बहन दीवार पर लगी तस्वीर की ओर देख कर हँसते हुए बोली, " देख रहें हैं पापा, चेहरा आवाज़ बिल्कुल आप की तरह और अब डपट भी आप ही की तरह रहा है, ये मेरा छोटा पापा।"