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मेरी ख्वाहिश-हर ख्वाहिश मेरी अधूरी ही रह गई

Ranjana sharma 27 Oct 2023 कविताएँ दुःखद मेरी ख्वाहिश#Google# 6287 0 Hindi :: हिंदी

हर ख्वाहिश मेरी
अधूरी ही रह गई
जो सोचा था वह दिल
में दब कर रह गई

कितने अरमान , कितने सपने
दिल में लिए हुए थी
जाने कहां कौन से मोड़ पर आईं
वो अरमान और वो सपने
वहीं दफन हो कर रह गई

अब ना कोई चाह
ना कोई उम्मीद
बस है आंखों में
थोड़ी सी आस

मगर ना जाने क्यों
वो भी लगता है कभी - कभी
अधूरी ही रह जाएगी

जिसके तलाश में घूम 
रही हूं  मैं दर- बदर
प्यासे सावन की तरह 
गिर रही हूं भूमि पर
            धन्यवाद

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