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मेरा बचपन

Alok Vaid 30 Mar 2023 कविताएँ बाल-साहित्य 79569 0 Hindi :: हिंदी

घूमे हारे थके हुए आकार सो गय पता नहीं
हुआ सवेरा चिंटू गुल्लू के संग भागे पता नहीं
ना खाने की चिंता थी ना रहने की थी फिकर
बस जो मिला खा लिया और भागे इतर बितर
मां ने मारा पता नहीं पापा ने पीटा पता नहीं
बस हम कंचे खेलेंगे लड़ाई भी होगी पता नहीं
पतंग उड़ानी आती नहीं पीछे दौड़ेंगे जोरों से
पढ़ने लिखने की फिकर नहीं बस होगा शोर जोरों से
पिटते जाते रोटी खाते जाते ना गुस्सा नाराजी
चटनी रोटी सूकी रोटी और और पांच रुपए की गाड़ी से राजी
"आलोक" का बचपन ऐसा था और में अच्छा खासा 
अब तो सवेरे उठते ही हमें कमाना है पैसा
पैसा कमा कर भी देखो मन की संतुष्टि नही
घूमे हारे थके हुए आकार सो गय पता नहीं
हुआ सवेरा चिंटू गुल्लू के संग भागे पता नहीं

                ✍️✍️आलोक वैद "आज़ाद"
               एक छोटा सा कवि एवम लेखक

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