Santoshi devi 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक लाचारी, 57784 0 Hindi :: हिंदी
टीन टप्पर की वह बस्ती है। मौन बाँधे कोई हस्ती है। कौन पढ़ता इनकी लाचारी शाम कल के भ्रम में ढलती है।। भुखमरी की ये रोज अमावस बैठ काँधे फिर-फिर हँसती है। किस तरह जुटती है रोटीयां। सुख परे आशाएं पलती है।। काम कुछ नेकी का कर ले हम। यह कही मेरे मन जँचती है। कुछ नहीं होता जाता देखा। बात फिर सुर्खी में छपती है।। शोर करती इच्छाएं मन की। बीच अल्हड़पन की मस्ती है।। जब जहाँ दीवाली मनती है। आस फुलझड़ियां जल उठती है।। संतोषी देवी शाहपुरा जयपुर राजस्थान।