संदीप कुमार सिंह 12 Nov 2023 कविताएँ समाजिक मेरी यह कविता समाज हित में है।जिसे पढ़कर पाठक गण काफी लाभांवित होंगे। 8421 0 Hindi :: हिंदी
आज दिवाली है-आज दिवाली है, चारों और दीये ही दीये जलेंगे। काली रात भी आज जगमगायेगी, खुद पे बहुत ही इतरायेगी। दीपों की मनोहर शृंखला लगती बेमिसाल, ऊपर वाले भी देखकर होते होंगे दंग। जीने का यह है अद्भुत मानवीय रंग, जिसमें स्नेह,भक्ति, भाईचारा भी है संग। असत्य पर सत्य की है यह जीत, मानवता का पर्व दिवाली है मीत। न किसी विशेष धर्म का ही है यह, यह तो है सच्चाई, सादगी का प्रतीक। आओ गले मिलकर मनाएं आज दिवाली, अलग कोई धर्म नहीं खाएंगे सब साथ एक थाली। मानवों में है नहीं कोई भेद, बनाने वाले तो सबको समझे एक। आज न शिकवा होगी और न ही शिकायत, न कोई तकरार न कोई मलाल। हर दिल मे भी प्यार के दीये जलेंगे, गम सारे भूलकर हम सब गले मिलेंगे। पूरा विश्व ही आज, दीयों के मद्धिम प्रकाश में जश्न मनाएंगे। भूलकर सारी भेद-भाव को, साथ में दिवाली के दीये जलाएंगे। (स्वरचित मौलिक) संदीप कुमार सिंह✍️ जिला:-समस्तीपुर(देवड़ा)बिहार
I am a writer and social worker.Poems are most likeble for me....