Vipin Bansal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #कोरोना की विदाई 34366 0 Hindi :: हिंदी
धरा का छीना श्चिंगार हमने अपनी जूबां के स्वाद की खातिर जीव जन्तुओ से छीना जीने का अधिकार हमने धरा को करा लहूलुहान हमने गंगा,जमना, नदी,समुंद्र सबने अपनी सुन्दरता खोई हिम ग्लेशियर भी पिंघँले पर मानवता न रोई धरा नैन से छीन लिए हमने उसके सपन सलौने ये शहरो का बढ़ता कद जंगल हो गए बौने नदियों की धाराएंं मोड़ी लहरों से छीना उनका गान ऋतुओं को भी हमने बदला अपने पर हमको अभिमान त्रिनैत्र जैसे चीर निंद्रा से जागे कालिया फन पर जैसे श्रीकृष्ण नाचे श्रीराम चले है जैसे करने दुष्टो का संहार जन्मा ऐसे है कोरोना कलयुग में जैसे हो अवतार जिसे कहते हम महामारी जीव,जन्तुओं का वो अवतारी कहाँ गए वो परमाणु बम कहाँ गए सारे हथियार आज हम खड़े निहत्थे वाह रे मानव तेरा विज्ञान वो कोरोना हम खिलौना निगल रहा वो संसार सामने उसके जो भी आए काल का ग्रास बनता जाए हिन्दु,मुस्लिम,सिख हो ईसाई सबको निगल रहा है ये भाई धर्म का चश्मा अब तो उतारो अपने घर को अब तो संभालो सामने इसके अब न आओ क्रोध को इसके मत भड़काओ घर में अपने सब छिप जाओ सामाजिक दूरी भी अपनाओ तन मन का मैल निकालो हाथो की करते रहो सफाई फिर होगी इसकी जरूर विदाई फिर होगी इसकी जरूर विदाई विपिन बंसल (कवि) 9540877709