उठ कर पानी तक न पीने वाले अब अपने कपडे खुद धूल लेते है
कल तक जो घर के लाडले थे आज वो अकेले में रो लेते है
बाप की डाँट पर मम्मी से शिकायत करने वाले अब ज़माने के सौ नखरे सह लेते है
सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी पराये हो जाते है
खाने में सौ नखरे करने वाले अब खुद पकाके कच्चा पक्का खा लेते है
बहन को छोटी छोटी बातों पर तंग करने वाले अब बहन को याद करके रो लेते है
माँ की बाजूं पर सर रखकर सोने वाले अब बगैर बिस्तर के ही सो लेते है
सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी पराये होते है
मम्मी से हर वक़्त पैसा मांगने वाले अब शर्म सा महसूस कर लेते है
घर में जो हंगामा करते थे वही अब घर के एक कोने में समय गुजार लेते है
दुसरो पर शायरी लिखने वाले अब अपने ही “आशु” को लिख लेते है
सिर्फ बेटियां ही नहीं बेटे भी पराये होते है
आशुतोष पांडेय