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मन क्यों उलझाएं-कांटों पर क्यों शीश झुकाएं

Sudha Chaudhary 11 Jun 2023 कविताएँ अन्य 7868 1 5 Hindi :: हिंदी

जिन्हें नहीं है प्रीति हमारी,
उनसे मन क्यों उलझाएं।
जीवन में रही विफलता तो,
कांटों पर क्यों शीश झुकाएं।

नहीं रहा अब शेष,
तुम्हारे आलंबन, उद्दीपन में।
रहा आश्रय जिस क्षण का
पलछिन उसको दूर भगाएं।

शूल चुभे पैरों में
आघात हुआ हृदय में,
बेकद्री के उस आलम से,
क्यों न स्वयं दूर हो जाएं।

विकल हदय मरूभूमि बनाया,
अपनी निजी चेतना से।
हरियाली की इच्छा में,
मैंने चुन चुन कुसुम सजाएं।

जिन्हें नहीं है प्रीति हमारी,
उनसे मन क्यों उलझाएं।।


सुधा चौधरी
बस्ती

Comments & Reviews

Raj Ashok
Raj Ashok सुन्दर तो शब्दों की जादू है।

10 months ago

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