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हम कभी गुलाम थे ही नहीं-हम आजाद थे आजाद हैं आजाद रहेंगे

Jitendra Sharma 11 Aug 2023 आलेख समाजिक हम कभी गुलाम थे ही नहीं।, Jitencra sharma, Vandana Inter college Narangpur Meerut 5563 0 Hindi :: हिंदी

आलेख- हम कभी गुलाम थे ही नहीं।

लेखक- जितेन्द्र शर्मा
दिनांक- 11/08/2023


हम अपने देश की स्वाधीनता का 76 महोत्सव मना रहे हैं। अनेक विद्वानों ने समय समय पर देश की स्वाधीनता के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले  आत्म बलिदानी वीरों का तथा उनके द्वारा किए गए कार्यों का पर्याप्त उल्लेख किया है। इसलिए मैं इस विषय से हटकर कुछ अलग बात आपके साथ शेयर करना चाहता हूं। 

हमें बताया जाता है कि हम सैकड़ो वर्षों तक गुलाम रहे और हम इस मिथ्या को सच भी मान लेते हैं। मेरा अपना मत इस  कथन से पूर्णतया भिन्न है। निश्चय ही हमारे देश के कुछ भागों पर विदेशी आक्रांताओं ने या शासकों ने शासन किया किन्तु हमारे पूर्वज कभी भी गुलाम नहीं रहे। क्योंकि हमारे पूर्वजों ने कभी भी विदेशी आक्रांताओं के सामने समर्पण ही नहीं किया। गुलामी की पहली शर्वेत ही समर्पण है, फिर हम अपने पुरखों को गुलाम कैसे मान ले। वे तो उनसे सदैव लड़ते रहे। और जो अन्याय और शोषण के विरूद्ध जंग करता है वह कभी गुलाम हो ही नहीं सकता। 

जो गुलाम बने थे, जिन्होंने अन्याय के विरुद्ध समर्पण कर दिया था, उन्हें तो कभी स्वतन्त्रता मिली ही नहीं। भारत के स्वतंत्र होने से पूर्व उन्होंने अपना अलग देश लेकर सदैव के लिये  अज्ञानता, कुछ लोगो या किसी मत, पंथ या मजहब की गुलामी स्वीकार की और भारत की महान सभ्यता और संस्कृति को छोड़कर सदैव के लिये अज्ञानता के अँधेरे में खो गए। 

हम न गुलाम थे ना हैं क्योंकि हम तो आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य जैसे महान लोगों की संतान है जिन्होंने सिकंदर जैसे शक्तिशाली योद्धा को भी देश से खदेड़ कर पुनः ईरान देश तक अपना शासन स्थापित कर लिया था। हम उन रानी लक्ष्मीबाई रानी, अहिल्याबाई होलकर और रानी अवंती बाई के उत्तराधिकारी हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए किंतु पराधीन होना स्वीकार नहीं किया।

सम्राट पृथ्वीराज चौहान और महाराणा प्रताप जैसे वीर हमारे आदर्श पूर्वज हैं जिन्होंने घास की रोटियां तो खाना स्वीकार किया किंतु विदेशी आक्रांताओं से अपने सम्मान का सौदा नहीं किया। 
मेरे देश की लाखों वीरांगनाओं ने अपना सम्मान और स्वतन्त्रता के लिये धधकती ज्वाला में कूदकर अपने प्राणों की आहुति देना उचित समझा किन्तु दासता के जीवन को स्वीकार न किया। 


हमारे पूर्वज तो चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगतसिंह, राजगुरू और अशफाकुल्ला जैसे लाखों जांबाज, आजादी के दीवाने है जिन्होने हंसते हंसते मौत को गले लगा लिया किन्तु गुलामी का  एक पल भी उन्होंने स्वीकार नहीं किया। हमारे हजारों पूर्वज तो सुभाष चन्द्रबोस की आजाद हिन्द फौज में शामिल होकर अंग्रेजी सेना से लड़ते लड़ते शहीद हो गये किन्तु गुलामी स्वीकार नहीं की। 

छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने जीवन काल में कभी विदेशी शासकों को चैन की सांस न लेने दी। सिक्ख गुरूओं ने तो अपनी संतान तक को बलिदान कर दिया किन्तु गुलाम बनकर जीने के लिये तैयार न हुए। ऐसे उच्च बलिदान के हजारों उदाहरण हैं जिनका यहां उल्लेख सम्भव नहीं है। 


हमारे महान पूर्वज सदैव अन्याय के विरूद्ध लड़ते रहे। कभी विजय मिली तो कभी पराजय। हारने पर पुनः लडे, और तब तक लड़ते रहे जब तक या तो विजयी हुए अथवा अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। न अपने सम्मान से कभी समझौता किया और न अपने धर्म व संस्कृति से। 


हमारे पूर्वजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर यह सुन्दर देश, स्वतंत्रत देश, जोकि प्राकृतिक धन सम्पदा से भरा हुआ है, हमको उपहार स्वरूप दिया है। अब इस उपहार को सजाना संवारना हमारा कर्तव्य है। आइये हम सब जाति धर्म, ऊंच नीच सब भेद भाव मिटाकर एक बनें और अपने इस महान राष्ट्र को प्रगति के पथ पर ले जायें। हमारा देश सदैव स्वतंत्रत व अक्षुण बना रहे इसके लिये हमारे मन में सदैव यह विश्वास बना रहे कि-
हम आजाद थे, आजाद हैं, आजाद रहेंगे।

धन्यवाद, जय हिन्द, भारत माता कि जय, वन्दे मातरम्।

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