Pravin Chaubey 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #काव्य #सायरी #पोएम #कवि # कविता#मोटिवेशन7 7322 0 Hindi :: हिंदी
एक बचपन ही तो था जो बचपने में गया थोड़ी मस्ती में गया तो थोड़ी खुद को समझने में गया जब हुए थोड़ा समझदार तो जिंदगी ने इम्तहान ले लिया कर्म करते गए और फल मिलता गया दिन निकलते गए और समय भी निकलता गया एक बचपन ही तो था जो बचपने में गया जब उमर थी पढ़ने की तब कमाने का धुन था आज कमा के क्या करे जब पढ़ाई ही काम था कभी इसकी तो कभी उसकी गालियां सुनते हैं जो पढ़ लिए थोड़ा और वो तालिया सुनते हैं वो सोच और थी और ये सोच और है वो दौर और था ये दौर और है एक बचपन ही तो था जो बचपने में गया थोड़ी मस्ती में गया तो थोड़ी खुद को समझने में गया - प्रवीण चौबे
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