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पिता की अंगुली

Shubham Kumar 30 Mar 2023 कहानियाँ दुःखद पिता की अंगुली 34653 0 Hindi :: हिंदी

मैं कितना नाजुक था, चलते चलते कभी मुंह के बल गिरता था, तब मेरे पिताजी, अपने हाथ देते थे, मैं उनकी अंगुलियां पकड़ कर, चला करता था, मैं जब भी आसमान में, पंछी देखता, तो अपने पिता से, प्रश्न करता था, मेरे पिताजी उत्तर देते थे, आप जब वही अंगुलियां, मेरे ऊपर उठती है,  तो अवश्य ही, हमने गलत रास्ते, अपनाए हैं, आज  वह  पिता प्रश्न करता है, तो हम उन्हें उत्तर_ देना अजीब नहीं समझते  शायद मेरा पथ गलत है, लेकिन इतना सोचने का, वक्त हमारे पास कहां, अब हमने ऐसे दौड़ लगाएं, कहां  रह गए हमारे पिता,, हमें तो उनकी प्रश्न से डर लगता है, अवश्य ही हमने कुछ गलतियां की है, क्योंकि वह पिता, हमारे प्रश्नों का उत्तर देने से, नहीं घबराते थे, मैं क्यों घबराता हूं, शायद हमने गलत रास्ते चुने हैं, पहले हमारे चलने पर, हमारे पिता खुश होते, अब हमारे चलने पर, उनको क्यों दुख होता है, इस बात का हमें सोचने का, अपना वक्त कहां है, ऐसा लगता है इस दौड़ में, वह अपने पिता  के साए, से भी दूर हो चुके,, अब हमेशा, मेरी पिता से मेरा नहीं बनता,
 इस बात को सोचने का वक्त हमारे पास कहां, पहले वही पिता_ हमारे लिए खिलौने लाने से पहले हमारी इजाजत नहीं लेता था _ लेकिन आज मैं, उनके लिए, जामा  खरीदने से पहले, कैसी इजाजत लेनी पड़ती है, पर हमें इन बातों को, सोचने का वक्त कहां, वह पिता का भी, चुपके से मेरे लिए, मिठाइयां लाते थे_ मुझे खिला कर , खुद भूखा सो जाते थे, पर किसी से कुछ बात नहीं कहता था, लेकिन आज मैं, उनके लिए कुछ लाता हूं तो, सारे मोहल्ले में इस बात को फैलाता हूं,, लोगों से अपने प्रशंसा लेता हूं, पर इन बातों को सोचने के लिए हमारे पास वक्त कहां,, पहले जब मैं गलती करता था, तो मेरे पिताजी चुपके से मुझे समझाते,  और  फटकार लगाते थे, आज मैं उनकी गलती को सारे मोहल्ले को सुनाता हूं, क्या मैं अपराधी नहीं, पर मेरे पास इन बातों को सोचने का वक्त  कहां है,

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