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श्रम का प्रकाश

मनीष राठौड 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य मनीष कुमार राठौड़ (मानाराम ) 7907 0 Hindi :: हिंदी

श्रम का प्रकाश था
मनुष्य का अहंकार था
इस धुंध जगत में
श्रम का आलोक था
काल बीत जाएंगे
जन उदीसी रह जाएंगे 
फुर्सत को किसी ने नहीं पहचाना
फुर्सत किसी को नहीं पहचानता
जो रेख़्ता सोते रहे वह उडीसी ही रह गए
जो जन नींद के पीछे नहीं दौड़े वह आगे बढ़ गए
परिश्रम है। मनुज का अर्थ
परिश्रम को कौन जाने पहचाने
यह ही है। श्रम का प्रकाश
तन मन के उजियारे में 

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