Sandeep ghoted 16 Jul 2023 कविताएँ समाजिक नई सोच written by Sandeep ghoted 10528 2 5 Hindi :: हिंदी
नई सोच उगता सूरज नई सोच तो छिपता सूरज निराशा घाट घाट जो भाषा बदले घाट घाट नहीं सोच मन कभी भागा इधर मन कभी भागा उधर नई सोच के इस चक्कर में मन में , ढिलाव आ गया नई सोच जीवन में क्रांति सी लाई है जीवन जो तहस-नहस होने पर था पहले जैसा आ ठहरा इस जीवन में मौसम बहुत बदलते हैं बारिश कभी मौसम से होती है कभी बिन मौसम के आज सोच बदली तो कुछ नया कर पाएंगे वरना इसके मायाजाल में लड़खड़ाएगे मन मेरा भंवरे भांति कभी इस जगह तो कभी उस जगह मैंने जो कुछ नया करना चाहा लोग जान के चक्कर में सब का बेड़ा गर्क हो जाए संदीप घोटड
8 months ago
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Hi 👋 My name is a Sandeep ghoted I am living in Rajasthan I am becoming of an ias and Ras office...