Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक व्यापारी किसान हैं 16664 0 Hindi :: हिंदी
रोटियां खिलाने वाले खुद भूखे सो रहे अन्न उगाने वाले को हैं दीमक खा रहे जो किसान हैं वो अब किसान लगते नहीं वड़े वड़े व्यापारी किसान बन गए किसान के बिक्री किसान बन के करने लगे बिक रहा किसान हर गली हर मोड़ पे हर चौक चौराहे पे जिसको खरीदना है खरीद लो जहा बाजार लगाना है लगा लो मंडियां सजा लो पर खरीदार भी व्यापारी किसान हैं