Saurabh Shukla 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Google/http://kwsvs.blogspot.com/2022/04/blog-post_23.html 28197 0 Hindi :: हिंदी
कभी वक्त था तो वक्त ना था ,डरते थे कहने से । मुस्किल में होते वो , तब डरते थे उनकी मुस्किल सहने से ।। वो रोज अदब से सुबह सर नवाते थे , क्या था वो वक्त हम डर से उनके सामने नज़रे नही उठाते थे । चढ़ते हुए हम उनके आंखों में अपने सपने पाते । शायद गैरत हम से थी, ना तो हम उनको शब में न छोड़ आते ।। वक्त तो दोनो का था ,दोनो मुनासिब भी । लेकिन उस वक्त की पहचान न थी , मुस्किल तमाम पर इस रस्क में जान न थी । क्या मुमताज़ , क्या ताज , उसकी फितरत में तो कोहनूर था। शायद आज उसकी निगाहों में उसका नूर था ।। शब उतरी , शबनम का जुनून उतरा । फितरत बदली फिकर का सुकून बदला ।। अब न शब है ,ना शबनम। अब सिर्फ मुस्कराती फितरत और हंसते फरिस्ते।।