Jitendra Sharma 30 Mar 2023 कहानियाँ समाजिक तैंदुआ, तैंदुआ, तैदुवा, Tanduya, Tanduva, जितेंन्द्र शर्मा, दीनापुर, दीना सिंह, जाट राजपूत 9807 1 5 Hindi :: हिंदी
कहानी- तैंदुआ लेखक- जितेन्द्र शर्मा तिथी-18/01/2023 बात उन दिनों की है जब महेंद्र सिंह धोनी की कप्तानी में भारतीय क्रिकेट टीम ने एक दिवसीय विश्व कप पर दूसरी बार विजय प्राप्त की। बच्चों और नव युवकों का क्रिकेट के प्रति जुनून उस समय अपने चरम पर था। पढ़ने वाले लड़के तो स्कूल से आकर किसी प्रकार अपने बस्ते घर पर इधर उधर पटकते और बैट उठाकर मैदान की ओर दौड़ जाते। दीनापुर में भी गांव के बाहर ग्राम पंचायत की एक एकड़ भूमि खाली पड़ी थी, जिसे गांव के लोग खपरैल कहकर पुकारते थे। गांव के किशोर अवस्था के लडकों ने मिलकर इस भूमि को साफ करके खेलने योग्य बनाया। ठाकुर सरजु चौहान का सबसे छोटा बेटा विकाश चौहान एक बैट खरीद लाया और चौधरी सूरजभान का मझला बेटा अनन्त चौधरी दो गैंद। क्रिकेट का खेल नियमित रूप से शुरू हुआ। गांव के नवयुवा खेलते और बच्चे उनका उत्साह बढ़ाने के लिये मैदान के चारों ओर बैठ कर मैच का आनन्द लेते। दीनापुर मिश्रित आबादी का एक छोटा गांव है। यूं तो गांव में अलग-अलग कई जातियों के लोग निवास करते हैं किन्तु गांव मेंं सबसे अधिक जनसंख्या राजपूत जाति के लोगों की है। दूसरी बड़ी संख्या जाटों की है जोकि लगभग राजपूतों के बराबर ही है। ठाकुर सरजु चौहान और दीनानाथ चौधरी दोनो ही गांव के सबसे बड़े किसान हैं और दोनों के बड़े बड़े घर आमने सामने बने हैं। कहा जाता है कि दीनापुर गांव को कभी किसी दीना सिंह नाम के व्यक्ति ने बसाया था उसके बारे में किंवदन्ति है कि वह सम्राट अशोक की सेना में ऊंचे पद पर था और बहुत ही बहादुर योद्धा था। गांव के राजपूत मानते हैं कि दीना सिंह राजपूत थे और उनके ही पूर्वज थे। तथा जाट दीना सिंह को अपना पूर्वज मानते थे। जैसा कि गांव की अपनी एक संस्कृति होती है, सभी जातियों के लोग गांव में मिल जुल कर रहते थे फिर भी कोई अवसर आता तो एक दूसरे को नीचा दिखाने में भी पीछे न रहते। ठाकुर सरजू चौहान लगभग पैंतालीस वर्ष के बलिष्ठ व्यक्ति थे। बड़ी बड़ी मूंछें उनके व्यक्तित्व को और अधिक प्रभावशाली बनाती। सूरजभान चौधरी भी लगभग सरजु ठाकुर की उम्र के ही थे। मजबूत शरीर के स्वामी थे। भले ही मुंह पर छोटी-छोटी मूछें थी, लेकिन जब सरजू ठाकुर उनके सामने अपनी मूंछों पर ताव देते तो अनायास ही चौधरी सूरज भान का भी हाथ अपनी मूछों पर चला जाता। न जाने दोनों के बीच क्या था, एक दूसरे को अपना दुश्मन भले ही ना मानते हो किन्तु एक दूसरे को नीचा दिखाने का अवसर तलाशते रहते। उनके बेटे अनन्त चौधरी और विकाश चौहान भी समान आयु के किशोर थे और साथ साथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे। दिखाने के लिये एक दूसरे के मित्र भी थे, लेकिन एक दूसरे के प्रति आंतरिक रिश्ता वही था जो उनके पिताओं के मध्य था। *** एक दिन की बात है गांव के किशोर लडकों के बीच क्रिकेट मैच चल रहा था। एक टीम का नेतृत्व अनंत चौधरी तथा दूसरी टीम का नेतृत्व विकास ठाकुर कर रहा था। विकास ठाकुर की टीम बैटिंग कर रही थी। विकास ठाकुर ने टन्न से बैट गेंद पर मारा तो गेंद आकाश में उड़ गई। लेकिन यह क्या अनंत चौधरी ने उसे बाउंड्री के पास लपक कर लिया। गांव का ही एक किशोर महेंद्र मैच में अंपायर था, उसने विकास ठाकुर को आउट दे दिया। जबकि विकास ठाकुर का कहना था की अनंत चौधरी ने कैच बाउंड्री से बाहर लिया है, अतः यह छक्का माना जाएगा। विवाद बढ़ा और इतना बढा कि दोनों टीम आपस में भिड गई। अब बैट वह विकिट शस्त्र बन चुके थे। कुछ देर युद्ध होता रहा। कुछ बच्चों के बीच बिचावन से युद्ध बंद हुआ। लेकिन यह कुछ समय के लिए ही था क्योंकि झगड़े में विकास ठाकुर का सिर फट गया था। जब यह बात गांव में पता लगी तो दोनों परिवारों के बीच लड़ाई का मुद्दा बन गई। दोनों परिवार के लोग लाठी-डंडे लेकर आमने-सामने आ गए और बात मार पिटाई तक पहुंच गई। बात और आगे बढ़ी और दो परिवारों तक सीमित ना रह कर बच्चों की यह लडाई दोनो जातियों के युद्ध बदल गयी। दोनों ओर से अनेक लोग घायल हुए और मामला पुलिस थाने से होता हुआ कोर्ट कचहरी तक जा पहुंचा। दोनों जातियों में यह स्थाई बैर का कारण बन गया। अब दोनों जाति के लोग एक दूसरे के शत्रु थे। शनै शनै तीन वर्ष गुजर गये किन्तु ठाकुर सरजु चौहान व सूरजभान चौधरी में बोलचाल तक न शुरू हुई। दोनों के परिवार भी एक दूसरे से कोई सम्बन्ध न रखते थे। दोनों परिवारों के मध्य केवल घृणा थी। *** बरसात का मौसम था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था किंतु न जाने कहां से एक तैन्दुआ उस क्षेत्र में आ पहुंचा। तैंदुआ बिल्ली प्रजाति के जंगली जानवरों में सबसे ज्यादा शरारती माना जाता है। वह शेर की तरह निडर, चीते की तरह फुर्तीला और बन्दर की तरह चपल होता है। दो-तीन दिन में ही उसने दीनापुर व उसके आसपास के क्षेत्र में वह आतंक मचाया कि लोगों ने घर से निकलना तक बंद कर दिया। किसान खेतों में काम करने के लिये भी टोली बनाकर जाते। बच्चे तो स्कूल तक नहीं जा पा रहे थे। पुलिस व वन विभाग के कर्मचारी रात दिन तेंदुए को तलाश कर रहे थे किंतु तेंदुआ उनसे ज्यादा चालाक था। वह अचानक प्रकट होता और किसी कुत्ते या पालतु पशु का शिकार कर गायब हो जाता है। रात के दस बजे होंगे कि तैंदुआ सरजु चौहान के घर में घुस गया। उसने ठाकुर के पालतु कुत्ते को उठाया और वहीं आंगन में खड़े नीम के पेड़ पर चढ़ गया। कुत्ता तैंदुए के जबड़े में फंसा हुआ मिमिया रहा था। ठाकुर की चौदह वर्षीय बेटी जो आंगन में लगे नल से पानी लेने के लिये आई थी उसने यह सब देखा तो उसकी चीख निकल गई। बेटी की चीख सुनकर ठाकुर सरजु चौहान आंगन की ओर दौड़े। बेटी ने पेड़ की ओर इशारा किया तो ठाकुर ने ऊपर देखा। तैंदुए की लाल आंखें देखकर ठाकुर सारा मामला समझ गया। उसने बेटी का हाथ पकड़ा और घर के अन्दर दौड़ा। ठाकुर बन्दूक थामे फिर आंगन में आया तथा तैन्दुए पर गोली चला दी। निशाना चूक गया किन्तु ठाकुर के इस कार्य ने तैंदुए को और अधिक आक्रामक कर दिया। तब तक ठाकुर के घर के पास शोर शुरू हो गया था। कुछ लोग लाठी डंडे लेकर ठाकुर के मकान के आसपास आ पहुंचे थे। ठाकुर ने पुनः गोली चलाई किन्तु वह भी बेकार गई। परिणाम यह निकला कि तैंदुआ और अधिक क्रुद्ध हो गया। उसने कुत्ते को, जोकि अब तक मर चुका था ऊपर से छोड़ दिया और ठाकुर सरजू चौहान के ऊपर आक्रमण करने के लिये पेड़ से छलांग लगा दी। ठाकुर के साथ से बन्दूक छूट गई, वह अपनी जान बचाने के लिये तैंदुए से भिड़ गया। टार्च की रोशनी में गांव वालों ने सारी घटना देखी किन्तु चिल्लाने के अतिरिक्त कोई कुछ न कर रहा था। अपनी जान जोखिम में कोन डाले? उसी भीड़ में सूरजभान चौधरी भी खड़ा था। वह बहादुर व्यक्ति था, यह सब देखकर उससे रहा न गया। वह अपनी सारी दुश्मनी भुलाकर अपनी लाठी लेकर तेजी से झपटा और तैंदुए से भिड़ गया। दोनों शत्रु मिलकर अपने सामुहिक शत्रु से भिड़े हुए थे। जल्द ही तैंदुवा समझ गया कि वह इन दोनों से पार न पा सकेगा अतः वह उन्हें छोड़कर भागने लगा। तब तक गांव के कई नौजवान जोश में आ चुके थे। उन्होंने तैंदुवे को घेरकर लाठी डंडों से पीटना आरम्भ कर दिया। सरजु चौहान लहुलुहान हो चुके थे। उनके शरीर से खून बह रहा था। सूरजभान चौधरी ने उसे बाहों में भरकर उठाया और घर के अन्दर चारपाई पर लिटा दिया। वह तेजी से अपने घर की ओर दौड़ा। अपनी कार लेकर ठाकुर के घर के सामने खड़ी की तथा पुनः अन्दर जाकर सरजु ठाकुर को उठाकर कार में लिटाया तथा कार शहर की ओर दौड़ा दी। गांव के दो लोगों ने उसकी इस कार्य में सहायता की। सरजु ठाकुर की पत्नी व बच्चे उसे बस मोन होकर देख रहे थे। यही हालत गांव वालों की थी। वह निर्णय नहीं कर पा रहे थे कि वे जो देख रहे हैं वह सच है या स्वप्न। ठाकुर बुरी तरह घायल था किन्तु होश में था। कार अस्पताल पहुंची और मरहम पट्टी शुरू हुई। डाक्टर ने बताया कि खतरे की कोई बात नहीं। तब तक ठाकुर की पत्नी भी अस्पताल पहुंच चुकी थी। ठाकुर बैड पर लेटा हुआ था। ठकुराइन को देखकर चौधरी ने वहां से बाहर जाना उचित समझा। वह जाने के लिये उठा तो उसका मन्तव्य समझकर ठाकुर ने उसका हाथ कस कर पकड लिया। मानो प्रार्थना कर रहा हो कि उसे छोड़कर न जाये। मुंह पर पट्टी बंधी थी अतः वह बोल न सकता था, लेकिन उसकी आंखें उसके मन की भावना प्रकट कर रही थी। चौधरी ने अपना दूसरा हाथ उसके हाथ पर रख दिया मानो कह रहा हो कि वह उसके साथ है। ठकुराइन बड़ी कृतज्ञता से चौधरी की और देख रही थी, मानो कह रही हो कि उसकी मांग का सिंदूर सदा उसका आभारी रहेगा। उधर गांव वालों ने तैंदुए को घेर लिया था। तैंदुआ घायल था अतः निसहाय होकर गिर पड़ा। किसी की सूचना पर वन विभाग के लोग भी आ गये थे। उन्होंने तैंदुवे को पिंजरे में बन्द किया और अपने साथ ले गये ताकि उसका इलाज कराकर वन में छोड़ सकें। तैंदुवा चाहे लाख बुरा था किन्तु दीनापुर में एक अच्छा काम भी कर गया था। दोनों परिवारों के साथ साथ दोनों जातियों का सारा बैर, सारी कटुता वह अपने साथ ले गया। गांव में क्रिकेट फिर शुरू हो गई। अनन्त चौधरी व राहुल ठाकुर अब एक ही टीम में खेलते हैं। तथा दोनों ही दीना सिंह को अपना पूर्वज मानते हैं जिसने दीनापुर नाम का गांव बसाया था। और जो बहुत बहादुर था तथा सम्राट अशोक महान की सेना में ऊंचे पद पर था। *** सम्पूर्ण।
1 year ago