Barde Jyoti 12 Apr 2023 कहानियाँ अन्य रोजा मेरी पालतु गिलहरी 20295 0 Hindi :: हिंदी
बारिश का मोसम था हर तरफ पाणी बिखरा हुआ था हम बच्चे कंपनी पाणी में खेल रहे थें हमारे घर के पिछे बड़ा सा निम, पिपल के बडे़ से पेड थे हम पाणी से खेलते हुए घर के पिछे चले गए वहा एक गिलहरी मरी पडी थी हमें बहोत दुख हुआ कि कितनी प्यारी गिलहरी थी उसी वक्त बहोत जोर से चिल्ला ने कि आवाज आया और हम सभी उधर देखने लगे तो देखा कि पेड से गिरा हुआ गिलहरी का बच्चा था बिचारा अनाथ था शायद अपने माँ को ढुंढता अपने घर से गिरा हुआ होगा .वो तो बहोत ही प्यारा और क्युट था, अभी तक तो ऑखें भी नहीं खुली थी फिर भी अनाथ हुआ. उसे लेकर हम घर आए मऺॉ ने हमें बहोत डाटा कि तुम इसे क्यों ले आए मर जाएगा वो उसकी माँ ढुँढेगी उसे जाओ छोड़ आओ उसे ,तब हमनें माँ को सब हकीकत बताई , अखेर उसे पालना तय हुआ फिर उसे कहा रखे कुछ समझ में नहीं आया, शाम को जब पिताजी घर आए तो उन्हें यह सब बताया.पिताजी बोले इतनी सी बात मैं उसे घर बना दुंगा. हम बहोत खुश हुए पिताजी ने हमें मोबाईल फोन का बक्सा लाने को कहा, और उसे काटकर घर बना दिया फिर उसे एक छोटा छेद करके दरवाजा बना दिया. उसे हमने उसके घर में अखेर शिफ्ट कर दिया. उसे ज्यादा थंड ना लगे इस लिए हमने उसमें कपास का बिस्तर बना दिया . अब उसे क्या खिलाए कुछ समझ नहीं आ रहा था माँ ने बकरी का दुध दिया पर पिलाए कैसे. इतुसा ही मुह था . कैसे पिलाया जाए दुध अखेर फिर दिमाग लगाया और बर्तन में दुध डालकर कपासी से हमने दिया को जैसे बाती बनाते हैं वैसे ही छोटी बाती बनाकर दुध के बर्तन पर रखा अखेर कार उसका ठिकाना भी हुआ, खाना हुआ, अब नाम क्या रखे और उसका नाम रखा (रोजा) . रोजा तिन महिने में ही बहोत बडा हुआ था अब उसे सब समझ में आने लगा था, खाना खाने वक्त वो माँ के आचल पर लटकता अगर किसी ने खाने को रोटी आगे कि तो झट से जाकर ले आता था हमे उसकी आदत सी पडी थी. खेलने में तो सबका बाप था. बिना पहचान वाले के पास कभी नहीं जाता था सिर्फ माँ, पिताजी, मैं और बहन इनके पास जाता था बाद में हमारे घर के सामने के पेड़ पर रहने लगा जब खाने को बुलाए तब आता था अगर पेड़ के निचे सो जाए तो हमारे बालों मे छिपता था, माँ के आचल में छिपता था, पिताजी के शर्ट में छिपता था, और बहन के कर्ट पर लटकता. खाना खाने पर कंधे से होकर हाथ में आता था, आदत सी लगी थी उसकी हमें उसकी और उसको हमारी बाद में घर पर कोई नहीं था और तब वो कहाँ चला गया, या फिर मर गया पता ही नहीं चला. बहोत ढुँढ लिया मगर नहीं मिला हम दो दिन रो रहे थें आदत हुई थी उसकी. सच में अगर प्यार किया जाए तो मासूम जानवर भी अपने हो जाते हैं, उन्हें सिर्फ भाषा नहीं आती.मगर इंन्सान के तरह कभी भी स्वार्थी नहीं होते .एंगेऐवो मासुम जानवर अपने रोजा को हम कभी भी भुल नहीं पाएंगे