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अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष धराशाही

virendra kumar dewangan 12 Aug 2023 आलेख राजनितिक Political 6805 0 Hindi :: हिंदी

मानसून सत्र में मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव जहां धराशाही हो गया, वहीं विपक्ष को सत्तापक्षी वक्ताओं, खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आइना दिखाते हुए उनके अरमानों पर पानी फेर दिया।

दरअसल, विपक्ष की मंशा थी कि वो अविश्वास प्रस्ताव के बहाने पीएम मोदी को देश की मौजूदा समस्याओं के लिए न सिर्फ कटघरे में खड़ा करेंगे, वरन् उन्हें मणिपुर पर बोलने के लिए विवश कर देंगे, तो उनकी पोलपट्टी देश के सामने उजागर हो जाएगी। 

लेकिन, उनकी अभिलाषा तब फलीभूत नहीं हुई, जब विपक्ष के एक-एक सवालों का करारा जवाब न केवल सत्तापक्षी वक्ताओं, अपितु प्रधानमंत्री ने उन्हें अपने जवाब से न केवल झकझोर कर रख दिया, अपितु अपने नौ वर्षीय कार्यकाल की उपलब्धियों को बखूबी पेश कर दिया।

इससे तिलमिलाया विपक्ष वाकआउट कर बैठा। देश ने पहली बार ऐसा विचित्र प्रयोग देखा कि अविश्वास प्रस्ताव लानेवाले विपक्षी सांसद ही वाकआउट कर रहे थे। जबकि उनको सदन में मौजूद रहकर प्रधानमंत्री से समुचित सवाल-जवाब कर घेराबंदी करना चाहिए था और अपनी अटूट एकता का परिचय देना चाहिए था। यह भी उनके लिए उल्टा दांव पड़ गया और प्रस्ताव ध्वनिमत से घ्वस्त हो गया।

	असल में, विपक्ष के लिए अविश्वास प्रस्ताव अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना ही नहीं, कुल्हाड़ी पर पैर मारना हो गया और सत्तापक्ष को वाकओवर देकर अपनी फजीहत करवाने का मिसाल बन गया। इसी का फायदा उठाकर प्रधानमंत्री ने जहां आइएनडीएआइ गठबंघन को ‘घमंडिया’ गठबंधन करार दे दिया और यूपीए का मुलम्मा कह दिया।

प्रधानमंत्री ने अपने 2 घंटे से अधिक लंबे वक्तव्य में जब मणिपुर पर कहना शुरू किया, तब हालांकि विपक्षी सदस्य वाकआउट कर बैठे थे, पर उन्होंने अपने बयानों से साबित करने का पुरजोर प्रयास किया कि मणिपुर सहित नार्थईस्ट की तमाम समस्याओं के जनक पूर्ववर्ती शासक हैं, जिन्होंने नार्थईस्ट की न सिर्फ अवहेलना की, वरन् उसे आतंकवाद की आग में झोंक दिया।

सच पूछा जाए, तो जिस तरह से प्रधानमंत्री को संसद के मंच के माध्यम से अपने 9 साल के कार्यकाल का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने में जबरदस्त ढंग से कामयाबी हासिल हुई, उसी तरह से उसने अपने बेबाक प्रस्तुतीकरण में 2024 के रण का खाका भी खींच कर स्पष्ट संकेत दे दिया कि 2024 में फिर एनडीए की सरकार भारी बहुमत से जीतकर आनेवाली है।

प्रस्तुत अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से देश ने यह भी देखा कि बिखरे विपक्ष के पास देश को आगे ले जाने का न विजन है, न नीति और न नीयत। इसके बावजूद उनके स्वयंभू नेता राहुल गांधी ‘फ्लाइंग किस’ देकर अशोभनीय आचरण के साए में घिरते नजर आए और प्रतिपक्ष के नेता अधीर रंजन चौधरी प्रधानमंत्री को असंसदीय शब्द कहकर निलंबित हो गए। 

जबकि इनके पास सरकार की घेराबंदी करने का सुअवसर था। वे महंगाई, बेरोजगारी, पेट्रोल-डीजल की कीमतों, टमाटर की महंगाई, बलात्संग, सड़क दुर्घटना, पर्यावरण व जनसंख्या की समस्या, मणिपुर हिंसा, आतंकवाद, अलगाववाद पर अपना बेबाक प्रस्तुतीकरण देकर सरकार पर निशाना साध सकते थे। लेकिन उन्होंने सुनहरा मौका गंवा दिया।

उल्टे राहुल गांधी ने जोश-जोश में मोदी सरकार को ‘भारत माता का हत्यारा’ कह दिया, जिसे प्रधानमंत्री ने लपक लिया और कांग्रेस पर गहरा कटाक्ष करते हुए पूछा कि हिंदुस्तान की भुजाओं को किसने काटकर पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान बना दिया? किसने कच्छथीबू को श्रीलंका सरकार को सौंप दिया।

शायद राहुल गांधी को याद नहीं कि स्टिजरलैंड जितना बड़ा भूभाग उन्हीं की सरकार की नाकामी से चीन हड़प लिया। आधा कश्मीर आजाद कश्मीर के नाम से पाकिस्तान कब्जा जमा लिया। देश का हजारों-लाखों हेक्टेयर जमीन चर्च और वक्फ बोर्ड को कांग्रेस की सरकारों ने सौंप दिया। दक्षिण भारत के एक पूरे-के-पूरे गांव को वक्फ बोर्ड निगल चुका है।

यह भी अफसोसनाक रहा कि विपक्ष का कोई नेता ऐसा सटीक, सारगर्भित, तथ्यपरक, तर्कसंगत व दिल को छूनेवाला वक्तव्य न दे सका, जो तारीफ के काबिल हो और लंबे समय तक याद किए जाने लायक। 

लब्बोलुआब यह कि विपक्ष को आढ़े हाथों लेते हुए जो दुर्गति प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों ने की, वह लंबे समय तक याद रखी जाएगी और भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में अमिट छाप छोड़ेगी।
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टीप-अनुरोध है कि रचना पढ़ने के उपरांत लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

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