Rameez Raja 05 Feb 2024 कविताएँ समाजिक हंसी कहां खो गई तुम 9804 0 Hindi :: हिंदी
देखो - देखो ढूंढों - ढूंढों, देखो हंसी कहां खो गई तुम ?? बरसों से देखता, खोजता था मैं जब से उसे, न जाने वह हंसी कहां खो सी गई ? थी वह कभी घर में या थी कभी दोस्तों में या थी अपने - परायों में, लेकिन न जाने अब है वह कहां, अब है वह कहां ? खोजते खोजते जब पहुंचा एक गांव में जहां एक नन्हे बच्चे को पिता बड़े ही लाड़ प्यार से चलना सिखा रहा था, जब वह गिरता तो पिता बचाकर उससे कहते आश्वासन देते कि जब तक मैं हूं तुम्हें कुछ होने न दूंगा, पाया मैंने उसमें मैंने प्यारी सी हंसी । आगे बढ़ा हंसी की तलाश में तो देखा एक फौजी की मां की आंखों में बरसों बाद मिलने आया वह बेटा, जब मिले गले दोनों बह गए नयन जल की धाराएं पाया मैंने वह हंसी उस प्यार भरे मातृत्व में, उस प्यार भरा मिलन में, पाया मैंने वह हंसी इन सब में । आगे बढ़ता गया तो पाया मैंने हंसी उन बहनों में जो एक दूसरे की टांग खींचते हंस हंस कर लोट पोट हो जाते उस आनंद क्षण में, पाया मैंने फिर से हंसी जो कहीं खो चली गई थी , जो खो सी चली गई थी । अनुभवों ने बता दिया मुझे कि जिसे खोजता यहां वहां वह तो है हम सब में हमारे ही समा हुआ है, बस आंख मूंदकर महसूस करो उसे अपने तन मन में , पाओगे तुम उसे जब अपने अहं को त्याग, सब से हिल मिलकर रहना जब सीखोगे तुम, जीवन की सारी खुशियां तो वहीं हैं मीत, बस खोजो और पहचानो अपने मन में झांको अपनी प्यारी - सी हंसी को अपनी प्यारी - सी मुस्कुराहट को जो कभी खो गई थी, जहां हंसी खो गई थी ।