Ujjwal Kumar 08 Oct 2023 कविताएँ समाजिक मेरा गाँव new poem writer ujjwal kumar 23597 0 Hindi :: हिंदी
मेरा गाँव वो छोटा सा मेरा गाँव जिसमें चलते हमारे पाव वो सुन्दर हमारे खेत खलिहान जो बताते हैं हमारी पहचान पेट की भुख वाली आग सह कहाँ पाती ये बात छोड़ के मैं ये डगर चला अब तो, मैं नगर नगर की तो क्या बात वो गाँव ही था खास किराये का घर सजा लिया अपना घर यही बसा लिया फिर गाँव गए ही नहीं धन तो यही कमा लिया नगर में पैसा कमाना है अब मिलता नहीं बहाना है ना ही खुशियाँ मिलती हैं ना ही मिलता कोई अपना पराया सा रहना पड़ता है पूरा करने के लिए सपना वो खिली धुप बंद कमरे में कहाँ से नजर आएगी वो सौन्धी मिट्टी की महक कहाँ बड़ी इमारतों में मिल पाएगी अकेले जीने में क्या मजा सयुंक्त परिवार के साथ जीना ही एक अनोखी जिन्दगी है ये मजा नगर में कहाँ मिल पायेगा युवा रचनाकार उज्ज्वल कुमार