Ujjwal Kumar 29 Mar 2024 कविताएँ राजनितिक युवा बेरोजगारी की ऐसी मार झेल रहे है। 812 0 Hindi :: हिंदी
युवा बेरोजगारी की ऐसी मार झेल रहे है जैसे सियासत में फंसे वो खेल रहे है... समय से भरते नौकरी का कुछ पता नहीं बेरोजगारी का ऐसे ये जाल फेंक रहे हैं... जो भी भर्ती देते,सारे पेपर लीक करवा रहे ऐसे ही हम युवाओं का पर भाल फेंक रहे हैं... न जी सकते सुकून से, न मरने की हालत में है घर,परिवार वाले उनकी कामयाबी के ख्याल देख रहे हैं... समझ न आता उसे कुछ,क्या करें कहां जाए खुद को घिरा चारों ओर से, लोगों के सवाल देख रहे हैं... नहीं है कोई उनका दर्द समझने, महसूस करने वाला सब बस उनकी नाकामयाबी का भूचाल देख रहे हैं... दिन,महीने साल बस यूं ही गुजरते जा रहे हैं बंद कमरे में बस कैलेंडर के बदलते साल देख रहे हैं... लेखक-उज्ज्वल कुमार