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नदी - झिलमिल झिलमिल खल खल करके मैं आई

Yogesh pintu thakur 05 Apr 2023 कविताएँ अन्य 11059 0 Hindi :: हिंदी

झिलमिल झिलमिल खल खल करके मैं आई हूं बतलाती है।
 नाम से है वह नदी सागर की बहन कहलाती है। 

कोमल शीतल जल है मेरा प्यासों की प्यास बुझाती हूं। बंजर 
बंजर  सूखी जगह को हरा-भरा में बनाती हु। 

दूर पहाड़ों से भी निकलना होता है मेरा। 
 जाते-जाते भले ही पत्थर आ जाए उसको चीर के निकलने का स्वभाव है मेरा। 

जहां से भी जाती हु सबको प्रणाम करके जाती हूं। 
 नदी हूं मैं मेरे जल का स्वाद सबको चखाती हु। 

गांवों से मैं खुश हु। शहरों से थोड़ा नाराज
 गांव वाले फूलों से करते मेरा स्वागत 
शहर वाले मेरे रास्तों को भी प्लास्टिक से करते हैं खराब

मेरे बहने की जगह  को भी बंद कर दिया है उन्होंने
 शीतल कोमल जल था मेरा मेला बना दिया है अब इन्होंने

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