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बदला नही बदलाव

Amit Kumar prasad 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Motivational Poem 15232 0 Hindi :: हिंदी

बदलती है आरज़ू हर दिल कि, 
चाहत से लेकर राहत तक! 
होता है तिलक परिवर्तन का, 
मंजील से लेकर आहत तक!! 
                 बदलने मे निरत हैं सुबह शाम, 
                 कभी दिव्य प्रकाश कि आश लिए! 
                 अभिवादन करती है पुकार, 
                  एक नुतन प्रभा का शुभाश लिए!! 
बदलती है सुबह जब औंझों से,
तब प्रकाश झुंककर अवकाश करे! 
बदला बदलाव करती है जब, 
तब धरा अचल विकाश करें!! 
                          बदले कि ही है निठुर कसौटी, 
                          जिसने पाला है नफरत को! 
                          बदलाव कर दिया अमर प्रेम, 
                          तृप्त कर दिया शौहरत को!! 
बदले से नही मिलता है ऐहमियत, 
बदलाव धरा का अचल धार! 
बदलती है फ़िज़ा कि जब रौऩक, 
होता जगती का सृजनहार!! 
                        विकारो कि इस अचल धरा का, 
                         दिव्य - दिव्य प्रमार्थ बल! 
                         बदलाव कर रहें दिव्य लोक, 
                         सुबह शाम निरत होकर!! 
बदले को मिटाने का परम मंत्र, 
अचल ज्ञान प्रतिष्ठा हैं! 
प्रेम युक्त प्रबल निष्ठा, 
अमरत्व धरा कि शिक्षा है!! 
               कहीं दिखा बदलाव कि अमर कसौटी, 
               बदले को प्रेम से मिटा दिया! 
               दुशमन भी रोए फुट फुट कर, 
               प्रेम कि शिक्षा सिखा दिया!! 
वो धर्म बना प्राक्रमों का, 
जो रही धरा पर अचल विचल! 
विचलित हुऐं वशुधा का भी नयन, 
जब गिरा धर्म इस वशुधा पर!! 
                           बदल दिया हृदय शोनित,
                           बदलाव कि अमर कहानी है! 
                          शक्ती करती है कोटी नमन, 
                          बदलाव परम सुखकारी है!! 
जीत कि नियती को लेकर, 
जब महा कर्म प्रस्थान करें! 
इस अचल शिद्दतों मे जाने, 
कितने ही दलीत स्नान करें!! 
                   नमन कर रहा कलम कवी का, 
                   कर्ण वीर बलशाली का! 
                   जिसने बदलाव से बदली बदले को, 
                    महा विर महा ज्ञानी का!! 
जीत का है इक मंत्र अचल, 
जीतने के लिए हार भी सिखो! 
क्योंकि हारने वालों का, 
इतिहास अमर पिछे देखो!! 
            भले कर्म चंचल अविचल, 
            बदलाव वक्त कि शख्ती है! 
             इस अमर धरा का महा ज्ञान, 
            जिस पर लोग हस्तें है अक्शर ईतिहास
            वही रचतें हैं!! 
बदलाव बदलती है किश्मत, 
वशुधा से अचल उस अम्बर तक! 
होता है तिलक परिवर्तन का, 
मंजील से लेकर आहत तक!! 

कवी/लेखक :- अमित कुमार प्रशाद

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