मारूफ आलम 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक # हिरन# कविता 17885 0 Hindi :: हिंदी
जब मुझ पर जुल्म हुआ तुम खामोश रहे जब तुम पर जुल्म हुआ मैं खामोश रहा इस खामोशी का ना तुम्हे कुछ फायदा हुआ ना मुझे कुछ फायदा हुआ अगर किसी का कुछ फायदा हुआ तो वो हुआ जुल्म और जालिमों का लूटेरों का,कातिलों का क्योंकि वो चाहते ही यही थे कि हम आपस मे बट जायें चुपचाप रास्ते से हट जायें और फिर वो हमारा शिकार करें बारी बारी से ठीक वैसे ही जैसे कि कोई लकड़बग्गा शिकार करता है किसी हिरन का और बाकी हिरन तमाशा देखते हैं दूर से,बहुत दूर से मारूफ आलम