Santosh kumar koli 22 May 2023 कविताएँ समाजिक राजस्थान का गौरव 8151 0 Hindi :: हिंदी
पिघल ममता मोम, रम स्वामिभक्ति रगों में घुल गई। निज सुत शोणित से, मां ममता परिभाषा बदल गई। चुटकी भर सैनिक, फ़रेबी फ़ौज से भिड़ गए। यहां मुंड कटे, रुंड शत्रु सेना से लड़ गए। धाक ध्वजा फ़रके सकल हिंद, अक्षौहिणी कटक रही। बादशाह नहीं कहला सके, मरे कसक लिए, आत्मा अब भी भटक रही। निहंग, निहत्था अरि से भिड़ा, सिंह पर सिंह सवार हुए। जहां सैफ़ बन गई सौत, फेरे संग कटार हुए। नाल अभी सूखी नहीं, वीरता उमर से उझल पड़ी। एक मरा मार हजार, शत्रु मुंह से वाह निकल पड़ी। मन केसरिया, तन केसरिया, बांध केसरिया केसरी बन गई। रणांगन जौहर दिखा, जली जौहर ज्वाला, जब आबरू ठन गई। है कोई कुरबानी जग में, जो आंख मिलाकर बात कर सके। शीश काट दे दी निशानी, सूरमा समर में ध्यान धर सके। राजसी ठाठ जोहे बाट, पहन चीवर जोग ले ली। सोलह कला अवतार मोहन, एक जोगिन से ली।