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वह मददगार बन जाता था

Prince 05 Jun 2023 कविताएँ समाजिक #Google #हिन्दी कविता #समाजिक #हिन्दी साहित्य 7694 1 5 Hindi :: हिंदी

एक बार था एक सामाजिक दर्पण,
जो आवाज उठाता, समस्याओं का आकर्षण।

हर एक स्वर्णिम रविवार को,
समाज के अंधकार को,
जगमगाता दिखाता था,
जो छुपा रह जाता था।

वह दर्पण जितना बड़ा, उतनी ही बड़ी थी उसकी ताकत,
हर सामाजिक बुराई से उठाता था आहत।

जहां अंधकार की छाया थी,
वहां उसने प्रकाश बिखेरा था,
सच्चाई की रोशनी जगाता था,
मनुष्यता की आवाज बढ़ाता था।

गरीबी के बोझ को सुनकर,
उसने साथ दिया था किसी का हाथ,
उजाले की किरणें छिड़कती थी,
सबकी आँखों में आशा जगाती थी।

विपदा के बंधन से जूझते हुए,
वह नये रास्ते दिखलाता था,
दुखियों के संग खड़ा होकर,
उन्हें सहारा बनाता था।

व्यक्ति की इच्छा को पूरा करने में,
वह मददगार बन जाता था,
सबके अंदर बुराई की पहचान को,
वह स्पष्टीकरण देता था।

ये सामाजिक दर्पण था मधुर बोलता,
अब तो बस एक सपना बन गया है।
मेरी आंखों में अब यही बसा है।

दोस्तो ! कविता अच्छी लगे तो शेयर , फॉलो और कमेंट जरुर करें। एक कविता लिखने मे बहुत मेहनत लगती हैं । आपका बहुत आभार होगा ।
                           
 लेखक : प्रिंस ✒️📗

Comments & Reviews

Dipak Kumar
Dipak Kumar Fantastic..

9 months ago

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