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नदी और किनारे-नदी बन तुम कुछ इस तरह बह जाते हम तुम दोनों किनारों में सिमट जाते

Uday singh kushwah 11 Nov 2023 कविताएँ प्यार-महोब्बत गूगल याहू बिंग 9339 0 Hindi :: हिंदी

*नदी और किनारे*
नदी बन तुम कुछ इस तरह बह जाते,
हम तुम दोनों किनारों में सिमट जाते,
साथ रहेगा हमेशा पर कभी मिल पाते,
किनारे-किनारे पता नहीं कहां तक जाते,
अपनत्व प्रेम समर्पण से काश निकल पाते,
तुम पर हम कभी अपना प्रिय हक जताते,
यह किनारों का सदियों का फासला हम-
तुम पल दो पल में तय कर जाते....
हमारे दरम्यान का फासला हम- भर पाते,
अपनी शरारती हरकतों से अठखेलियां खेलते,
मेरी सदियों की मिलन की प्यास तुम बुझाते,
सरल - सलिला के नीर में हम -तुम   नहाते,
मेरी चाहत का तुम काश संगीत सुन पाते,
हृदय की धड़कनों को तुम सहज समझ पाते,
धड़कनों की मधुर ताल से ताल बजाते,
खेलती मंझधार में सब क्या मेरे आंसू देख पाते,
जीवन संगीत के साज पर हमारे मन थिरक जाते,
हम-तुम काश कभी दरिया का हिस्सा बन पाते,
बूंद बूंद प्यार के लिए हम तुम तरस जाते,
तुम्हारी मीठी मीठी-मीठी बातों में बह जाते,
हम मिल ना पाये तो क्या जन मानस में अमृत
बहाते....
तेरे आंगन में हम श्वेत चुनर पहन खूब इतराते,
तुम्हारे शीतल नीर से अपने हृदय की प्यास बुझाते।
कवि उदय सिंह कुशवाहा
ग्वालियर मध्यप्रदेश से

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