Sandeep ghoted 24 Jul 2023 कविताएँ समाजिक जीवनधारा poem written by Sandeep ghoted 8209 0 Hindi :: हिंदी
जीवनधारा हुआ सवेरा तो यह सोचा कि आज तो कुछ नया करेंगे यह ख्याल न था कि अभी तो मैं इस सृष्टि में आया नहीं कुछ दीपक दिन में जलते हैं कुछ दीये रात में बुझते हैं ऊपर है जो नीला आसमा कितना प्यारा पल है जन्म लिया तो सोचा कुछ तो नया करेंगे पर यह नहीं पता था कि इस इस जीवन में घटना क्या बढ़ना है कभी मन ऊपर उड़ता तो कभी फंदे पे लटक जाता क्या पता जीवन में क्या करना है अभी जन्म लिया तो कुछ तो करना पड़ेगा बिना मशाल के अंधेरे में खोना नहीं है पढ़ना है तो आगे बढ़ना है नौकरी लगी तो शादी का पहरा पड़ेगा भारी मैंने यह सोचा न था कि शादी के बाद यह सब होता है अब बच्चे जन्में तो अब जवानी खो गई पन्नों में बचपन को ना सोचा हमने कभी बच्चों के पीछे पर ये क्या पता था कि बच्चों के बोझ में सब को ढलना पड़ेगा जीवन रूपी रेल में सबको चढ़ना पड़ेगा इस जीवन मे मौसम बहुत बदलते हैं कुछ रंगीन होते हैं कुछ बदहोश होते हैं हमने खिलौने देखें नहीं बच्चों को कहां से दे स्वय खिलौनों के मदमस्तअग्नि में जलते रहे उम्र भर अपने धंधों में उलझे पड़े रहे कभी ना अच्छा खाया हमने कभी ना अच्छा पिया हमने धंधो के पीछे दौड़ा है आदमी अंधों के पीछे रोड़ा यह रीत जो सृष्टि कि सबको इसमें चलना पड़ेगा जीवन के हर पड़ाव में सबको ढलना पड़ेगा
Hi 👋 My name is a Sandeep ghoted I am living in Rajasthan I am becoming of an ias and Ras office...