Baba ji dikoli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक सामाजिक/देशभक्ति/समाज सुधार/मन की बाते/ 12591 0 Hindi :: हिंदी
आज की युवा पीढ़ी खुद को भूल रही है । प्रेम की झूठी परिभाषा में खुद को तोल रही है । निज जीवन के कर्तव्यों को भूल गई है ,मात पिता के बलिदानो को झूठा बोल रही है । पहले बालक खेला करते थे मिटटी के खिलौनो से आज की पीढ़ी भविष्य से खेल रही है । इनको अपने मात -पिता पिता के कर्तव्यों का मोल नही है। अरे सुधर जाओ नौजवानों अब तो भारत भूमि भी यह बोल रही है । जरा सोचो उनके बारे में जिन्होंने तुम्हारे लिए अपना सुख चैन गवाया है । तुम्हारे उज्जवल भविष्य के लिए तुम्हे शहर भिजवाया है । समय की पावन बेला को तुम आज समझ नही पाते, हो समय बीतने पर फिर क्यों पछताते हो । अपनी असफताओ पर क्यों? तुम झूठा लेप लगाते हो फिर अपने ही मात -पिता पर आरोप लगाते हो । क्या तुम्हारी आत्मा अब भी नही बोल रही है ,तुम्हारी पत्नी तुमारे माँ बाप से असभ्य बोल रही है । आज की युवा पीढ़ी खुद को भूल गयी है। याद करो तुम कल जिन्हें ईश्वर से भी बड़ा कहते थे तुम्हारी खुशियो की खातिर जिन्होंने घर के जेवर बेचे थे तुम्हारे लिए जो भूखे रहते थे अपनी आँख का तारा जो तुमको कहते थे,क्या तुमको अब कुछ याद नही नही है। आज की युवा पीढ़ी खुद को भूल रही है अपने वच्चो पर तुम कितना प्रेम लुटाते हो खुद के माँ- बाप को बृद्ध आश्रम भिजवाते हो कर्म धरा सब देख रही है। आज की युवा पीढ़ी सब भूल गयी है ।@babajidikoli