Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक वजूद 95612 0 Hindi :: हिंदी
साहब, सबकी पड़ती है पार। समय नहीं करता, किसी का इंतजार। वक़्त सब पर, करता है एतबार। जाते -जाते रह जाता, वही बनता सरदार। किसी के जाने से, नहीं रुकता संसार। सबका अपना वजूद, अपनी-अपनी है धार। साहब, सबकी पड़ती है पार। बीस न सही, अन्नीस सही। सोलह आना शरअ न सही, तेरह- बाइस सही। दादागिरी न सही, बख़्शिश सही। जिसका कोई नहीं, चाहे ईश सही। प्रकृति, सबको लेती है संवार। साहब, सबकी पड़ती है पार। दुनिया सबकी है, धत् , सत्त, छोटा- बड़ा। न छोटा न बड़ा, सबका अपना-अपना धड़ा। यह दुनिया थमती नहीं, कोई गया कोई खड़ा। यह धरती गोल है, क्यों चक्रव्यूह पड़ा। रज रला, कोई चांद, सितारे ले उतार। साहब, सबकी पड़ती है पार। सबकी पड़ती है पार।