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ये बेटियां, घर की महकती कलियां

Trilok Chand Jain 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य Beti/Daughter 19081 0 Hindi :: हिंदी

ये बेटियां, 
घर की महकती कलियां,

ये ही तो हैं जो खुशी में भी रुला जाती हैं
ये ही तो हैं जो हर गम को भुला जाती हैं

खुद के सपने भी पिता की औकात से बुनती है
गुंजाइश के अनुसार ही अपने ख्वाब चुनती है
ख़्याल जहन में हर पल रहता है घर का
हर दर्द में ये पहली हमदर्द बनती है।

पराये घर जा पिता को कर्तव्य मुक्त करती है
वहां जाकर फिर से जीवन प्रारंभ करती है
मिटा देती है सारी पहली इच्छाओं को
अब खुशी के नये अफसाने यहां ढूंढती है।

यह सह जाती है सबकुछ, तिरस्कार नहीं सहती है।
प्यार दो, सम्मान दो, ये तो किस्मत से मिलती है।।

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